गुरुवार, 7 अगस्त 2014

हादसा.....

रकीबो की फिक्रे तमाम हो गई

दोस्ती जो यहां बदनाम हो गई .

उन्ही के शहर मे ठिकाना ढूंढ रहे है

मुश्किल मे कितनी ये जान हो गई.

अपनो से ही सब किनारा करने लगे

उम्मीद इस कदर यहां निलाम हो गई .

हादसा   हादसा और हादसा ही यहां

हर कहानी का सिर्फ उनबान हो गई .

4 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत खूब


सादर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाजवाब और अर्थपूर्ण शेर हैं सभी ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उम्दा और बेहतरीन... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।