बूंदे ओस की


ओस की एक बूँद

नन्ही सी

चमकती हुई

अस्थाई क्षणिक

रात भर की मेहमान ___

जो सूरज के

आने की प्रतीक्षा

कतई नही करती ,

चाँद से रूकने की

जिद्द करती है ,

क्योंकि

दूधिया रात मे

उसका वजूद जिन्दा

रहता है ,

सूरज की तपिश

उसके अस्तित्व को

जला देती है ।

टिप्पणियाँ

अनीता सैनी ने कहा…
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२० -१०-२०१९ ) को " बस करो..!! "(चर्चा अंक- ३४९४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
Jyoti Singh ने कहा…
दिल से शुक्रियां आपका
क्षण भर में जीवन जी लेने की लालसा ओस की बूँद को अमर कर जाती है ... स्वयं में समाहित बूँद पूर्ण हो जाती है ...

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