रविवार, 3 मई 2020

कहर कोरोना का

जिंदगी हादसों की शिकार हो गईं
चन्द रोज की यहां मेहमान हो गई।

न कोई आता है न कोई जाता है
सड़के कितनी सुनसान हो गई ।

सहमा -सहमा सा है हर एक मन
दूर रहने की शर्ते साथ हो गई ।

कोरोना का ढाया ऐसा कहर
आज की जिंदगी बर्बाद हो गई ।

कब पायेंगे निजात इस आफत से
यही फिक्र अब तो दिन रात हो गई ।

आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।

6 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढ़िया कोरोना कविता 👍

पवन शर्मा ने कहा…

वाह....सुंदर

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

कोरोना ही दिन, कोरोना ही रात हो गई

अजय कुमार झा ने कहा…

अब तो ये महामारी जल्दी ख़त्म हो तो ही कुछ अलग सोच समझ सकें | सब कुछ आज इसी बीमारी के इर्द गिर्द सिमट कर रह गया है | सामयिक और सार्थक पंक्तियाँ

Vandita Gupta ने कहा…

Wah Jyoti
Sabke man ki bat kah dalsunder

संगीता पुरी ने कहा…

आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।

सच है !