धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
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ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
नमस्कार
सच में "सन्नाटा" रचना में एक अलहदा सोच दिखाई दी है.
आपने तो श्मशान से भी एक प्रश्न उठा कर पाठकों के बीच खडा कर दिया है.
दिल को छो जाने वाली पंक्ति :-
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
बिखरी है
- विजय तिवारी " किसलय "
आपने श्मशान से प्रश्न पूछ अपनी 'ज्योत'अब श्मशान में में भी बिखेर दी है.
कहतें हैं 'शिव' का वास होता है श्मशान में.
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ
बहुत तेज़ शोर है सन्नाटे का ..
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ .
बहुत गहरी चोट छिपी हे आप की इस कविता मे, धन्यवाद
सारी आत्माएं मिलकर .....:))
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ .
Gahan Abhivykti...
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ
बहुत तेज़ शोर है सन्नाटे का ..
बहुत अच्छा लिखा है...
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ
कभी सन्नाटा भी चुभता है. गज़ब एहसास भरें है ज्योति जी आपने इस कविता में. अंदर तक हिला दिया. बहुत सुंदर.
bhai aapne to gazab ka prashn uthaya hai lekin bilkul sateek rachna
jahan har roz jane kitne hi dafna diye jaate hain .par fir bhi sannta vahan bikhra pada hai .
lekin vah bahuto ki aviral aansuo se nam bhi to hota hoga fir kitni der jashhn manayega . srishhti ke niymo se to har koi bandha hota hai .fir kapalik kitni der jashn manayega.vo to kurati hi iska aadi ho chuka rahta hai .
atah unke liye ye koi naya kary nahi haota .ham sabhi apne apne kartavyo se bandhe hue hain
aur chahe jaise bhi use pura karna hi padta hai .
aapki prastuti waqai is bar alag si parantu yatharthta liye hue hai
bahut hi sarthak post
badhai
poonam
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
बिखरी है
सुंदर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
बिखरी है
khoob likha hai
rachana
अहसास कराओ..
बहुत सुंदर पंक्तियां।