शनिवार, 21 सितंबर 2013

हम अंत कभी नहीं चाहते .........



एकता  और  प्रेम  की  मिसाल  
हम  कायम  करना  चाहते  थे ,
अमन  और  इंसानियत  का  हथियार  
हम इस्तेमाल  करना  चाहते  थे  ,
मगर  आक्रोश  और  जुनून  में  
खौलते  हुए  चंद  विचार  ,
अस्त्र -शस्त्र  चलाने  पर  
हमें  मजबूर  करते  रहे  ,
इतिहास  के  पन्ने  जो  पहले  
वीर  गाथाओं  से  भरे  थे  ,
आज  काले  -काले  धब्बो  से 
भरकर  भद्दे  होते  जा  रहे  ,
समय  को हम  चाहते  है  रोकना  
इतिहास  को  हम चाहते है  बदलना  
पर  दोनों  ही  हमारे  वश  में  नहीं  रहे  ,
हम  अंत  कभी  नहीं  चाहते  थे  
पर   इसके  भागीदार  तो  बने  रहे  ,
ऐसा  लगता  है  मानो  
इस  युग  के  अंत  को 
 हम  बड़े  नजदीक  से  है  देख  रहे  ।
 








4 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना !

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संजय भास्‍कर ने कहा…

दिल से निकली हुई सच्ची बात

Alpana Verma ने कहा…

अपनी चिंता को बहुत अच्छी तरह से कविता में अभिव्यक्त किया है आपने..

मुझे अब भी उम्मीद नज़र आती है ज्योति कहीं-कहीं .... अगला साल तय करेगा हम अंत के कितने नज़दीक हैं.

ज्योति सिंह ने कहा…

alpana tumari baate aur umeede dono hi rang laaye ,aage jurm aur bhyanak roop na dhare aur jald hi ant ho in buraiyon ka ,sukriyaan.