गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

गरीबी

इस  जहां में  गरीबी  इतनी  आसान  नहीं  यारो  

एक  पेट  के लिए  आदमी कितना  भटकता  है यारो ,

कल  के सूरज  के लिए  यहाँ  कोई  नहीं  सोचता  

आज  की  शाम  गुजर  जाये  यही  बहुत  है  यारो  ,

हर  वक़्त  वो  इसकी  फ़िक्र  में घुलता  रहता है  

रात  से  भी  अधिक  गहरा  साया  इसका है  यारो  ,

जीने  के लिए  तमाम  कोशिशे  करता रहता है 

वो  आदमी  जो  है ,हिम्मत  नहीं  छोड़ता  यारो  ,

हालत  इनकी  संभल  जाये  हमेशा  के लिए  ही  

बस  यही  दुआ  मिलकर  अल्लाह  से करो  यारो  । 

3 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जीने के लिए तमाम कोशिशे करता रहता है
वो आदमी जो है,हिम्मत नहीं छोड़ता यारों ... लाजबाब,बेहतरीन प्रस्तुति...!

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प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

यही तो है पूर्णता की खोज