मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

रहमत है उस खुदा की
गुजर हो रहा है ,
हर हाल मे यहां सबका
बसर हो रहा है .
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जिस बात पर यकीन
कभी होता नही था
उस बात पर यकीं
अब हो रहा है .
...........
इतनी घनी आबादी
और आदमी अकेला
कहने को उसे अपना
कोई नही मिल रहा है .
"'''''''
आदमी अठन्नी और
खर्चा रुपया
शौक इस कदर हमे
ले डूब रहा है .
ुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुु
मकान का नक्शा कुछ
इस तरह बनने लगा है
जो जमीन पर था वो
आसमान पर बस रहा है .
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वाकई मे दुनिया
बहुत बदल गई
इस बात का इल्म
हमे हो रहा है .



3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुरत खूब ... देखते देखते दुनिया बदल जाती है पता ही नहीं चलता ....
लाजवाब लिखा है ...

Alpana Verma ने कहा…

ब्लॉग खोलते ही एक सुन्दर फूल स्वागत करता है ..और अब पढ़ीं ये रचनाएँ. बहुत बढ़िया लिखी हैं.शीर्षक भी कुछ होता तो अच्छा था.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..