पतवार

शीर्षक   ---पतवार
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उम्र गुजर जाती है सबकी

लिए एक ही बात ,

सबको देते जाते है हम

आँचल भर सौगात ,

फिर भी खाली होता है

क्यों अपने मे आज ?

रिक्त रहा जीवन का पन्ना

जाने क्या है राज  ?

बात बड़ी मामूली सी है

पर करती खड़ा फसाद ,

करके संबंधों को विच्छेदित

है बीच में उठाती दीवार ।

सवालों में उलझा हुआ

ये मानव संसार

गिले - शिकवे की अपूर्णता पर

घिरा रहा मन हर बार ।

रहस्य भरा कैसा अद्भुत

है मन का ये अहसास ,

रोमांचक किस्से सा अनुभव

इस लेन- देन के साथ ,

जीवन की नदियां  मे

चल रही है पतवार ,

कभी मिल गया किनारा

कभी  डूबे  बीच मझधार ।
. ....  ..................
ज्योति सिंह

टिप्पणियाँ

भावमय करते शब्‍दों के साथ सशक्‍त रचना ..।
Jyoti Singh ने कहा…
तहे दिल से आभारी हूँ ,संजय शुक्रिया
Anuradha chauhan ने कहा…
बेहतरीन रचना
Jyoti Singh ने कहा…
धन्यवाद अनुराधा जी नमस्कार

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