दुर्दशा ?
और दुर्दशा
चीटी की भांति
होती जा रही है ,
कब मसल जाये
कब कुचल जाये ,
कब बीच कतार से
अलग होकर
अपनो से जुदा हो जाये ।
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
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