बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
शाम से लेकर सुबह का इन्तजार इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार । फासले बढ़ते रहे लेकर तेज रफ़्तार बेताबी करती रही दिल को बेकरार । मिटने लगी दूरियाँ आने से उसके आज बढ़ने लगी बैचेनियाँ हर आहट के साथ । नजदीकियां करने लगी ख़ामोशी इख्तियार देखकर हम उनको सामने करेंगे क्या बात । मिनटों में यहाँ आये कितने सारे ख्याल फुर्सत में भी रहे जिनसे हम बेख्याल । जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
टिप्पणियाँ
अच्छी रचना ...