रक्खो न भेद कोई

ईश्वर हो या अल्लाह

वो कहता बस यही

मुझे न चाहिये कोई जमीन

और न इमारत बड़ी बड़ी

मैं तो हूँ कण -कण में

जीवन की हर धड़कन में

याद करोगे जिस जगह

मिलूंगा तुम्हें मै वही ,

नाम हमे चाहे जो दे दो

इबादत तो है एक ही

बाँट रहे हो क्यो मुझको

मै तो हूँ सबका ही ,

मै तो हूँ नेक इरादों में

मानवता की राहों में,

प्रेम की निर्मल भावो में

घनी धूप ,ठंडी छांवो में,

इंसानियत से बढ़कर

नहीं होता धर्म कोई ,

धर्म सभी होते है सच्चे

अहसास सभी होते है पक्के

वही इनायत बरसेगी

जहाँ होगा फर्क न कोई

मैंने तो नहीं सिखाया

तुम्हें करना भेद कभी ,

न कोई हिन्दू ,न कोई मुस्लिम

है केवल यहां इंसान सभी  ।

टिप्पणियाँ

काश सभि अपने को इंसान समझ सकै तो ये दुनिया जीने लायक हो सके ...भावपूर्न ...
बहुत अच्छा ज्योति । बहुत खुशी हुई कि कलम फिर चल.पड़ी है ।
अजय कुमार झा ने कहा…
काश कि ये बात सभी समझ पाते तो बात ही क्या थी , बहुत सुन्दर पंक्तियाँ। जारी रहिये
Jyoti Singh ने कहा…
आप सभी का तहे दिल से शुक्रियां

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