चल रही है पतवार ...


उम्र गुजर जाती है सबकी

लिए एक ही बात ,

सबको देते जाते है हम

आँचल भर सौगात ,

फिर भी खाली होता है

क्यों अपने मे आज ?

रिक्त रहा जीवन का पन्ना

जाने क्या है राज  ?

बात बड़ी मामूली सी है

पर करती खड़ा फसाद ,

करके संबंधों को विच्छेदित

है बीच में उठाती दीवार

सवालों में उलझा हुआ

ये मानव संसार

गिले - शिकवे की अपूर्णता पर

घिरा रहा मन हर बार ।

रहस्य भरा कैसा अद्भुत

है मन का ये अहसास ,

रोमांचक किस्से सा अनुभव

इस लेन- देन के साथ ,

जीवन की नदियां  मे

चल रही है पतवार ,

कभी मिल गया किनारा

कभी  डूबे  बीच मझधार ।

कभी मिल गया किनारा

कभी डूबे बीच मझधार ।
. ....  ..................

ज्योति सिंह

टिप्पणियाँ

बहुत अच्छा लिख रही हो ।
Seema Bangwal ने कहा…
ससाह में उम्र कितना कुछ अनुभव दे जाती है। उम्दा।
Sarita sail ने कहा…
अच्छी रचना
बहुत सुन्दर भाव. जीवन को कभी किनारा मिलता है तो कभी पतवार छूट जाता है और जीवन स्वाहा.
Ravindra Singh Yadav ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25 मई 2020) को 'पेड़ों पर पकती हैं बेल' (चर्चा अंक 3712) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
Rakesh ने कहा…
सुन्दर रचना
यही है जिंदगी की चाल ... अपने हाथ में कुछ नहीं होता ...
कभी पार तो कभी मझधार ...
अनीता सैनी ने कहा…
ज़िंदगी की जद्दोजहद का शानदार सृजन किया है आपने आदरणीय दीदी.
सादर
Jyoti Singh ने कहा…
प्यारी सी टिप्पणी के लिए धन्यवाद प्यारी बहन
Jyoti Singh ने कहा…
आपका स्वागत है ,बहुत बहुत शुक्रियां
Jyoti Singh ने कहा…
सही कहा आपने यही है जिंदगी, शुक्रियां दिगम्बर जी
Jyoti Singh ने कहा…
हार्दिक आभार
Jyoti Singh ने कहा…
शामिल करने के लिए शुक्रियां
Jyoti Singh ने कहा…
तहे दिल से शुक्रियां आपका
Jyoti Singh ने कहा…
आपका हार्दिक आभार
Jyoti Singh ने कहा…
बहुत बहुत धन्यवाद
Jyoti Singh ने कहा…
बहुत सुंदर टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद
Jyoti Singh ने कहा…
आपकी दुआएं है,सबका साथ ,चल पड़ी है गाड़ी बरसों बाद ,हौसला अफजाई के लिये दीदी आपका धन्यवाद ,

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