पत्थरों का स्रोत
पत्थरों का ये स्रोत ..
क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
और सोच रही हूँ
कैसे बीनूँ इनको ?
एक लम्बा पथ तुम्हे
बुहार कर
दिया था ,मैंने
और तुमने उसे
जाम कर दिया
कंकड़ पत्थर से ।
पर यहाँ
सहनशीलता है
कर्मठता है
और है
इन्तजार करने की शक्ति ,
ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।
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मौन होकर निहार रही हूँ
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द
सहन न कर पाओ
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-0६-२०२०) को 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
सकारात्मकता का भाव लिए सुन्दर सृजन ज्योति जी ।