मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

कलम की जिद...

करने लगी कलम आज शोर

शब्दों को रही तोड़-मरोड़,

कुछ तो हंगामा करो यार,

अच्छा नहीं यूँ बैठे चुपचाप।

कागज़ पे तांडव हो आज,

लगे विचारों के साथ दौड़,

मच जाए आपस में होड़।

मचला है, ख्यालों में जोश ,

उसे नहीं कुछ और है होश।

ले के नई उमंगों का दौर,

करने लगी कलम आज शोर।

4 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

achcha laga kalam ka shor.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

ले के नई उमंगों का दौर,
करने लगी कलम आज शोर।
जी हाँ ! कलम का शोर बहुत ही जरूरी है
रचना बहुत अच्छी लगी। मेरे ब्लाग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।आगे भी हर सप्ताह आप को ऐसी ही रचनाएं मेरे
सभी ब्लागों पर मिलेगी,सहयोग बनाए रखिए......

आजकल.......

ज्योति सिंह ने कहा…

kalam ke sahyog ke liye aapka shukriya

ज्योति सिंह ने कहा…

kalam sada chalti rahe karte rahe dua