कथा सार
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
टिप्पणियाँ
'यकीन बन कर आये ..चाहो तो रोक लो '..सच्चे भाव हैं.
sandesh lite achee rachana......
अच्छी लगी रचना.
कहा न जाए,
कुछ पल पहले साथ
आगे धोखा दे जाए।
सुन्दर रचना!!
vivj2000.blogspot.com