रविवार, 25 जुलाई 2010

शिल्प -जतन


नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम ,
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन
उभर उठी दरारे भी
बिखर गये कण -कण ,
लगी कांपने खिड़की
सुनकर भू -कंपन ,
दरवाजे भी सहम गये
थाम कर फिर धड़कन
जरा सी चूक में
टूट रहे सब बंधन ,
शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे बच जाती
दरकने से और
संभल जाता ये भवन

20 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

bahut sundar paribhaashaa prastut kee hai rishton ki
bahut badhiyaa!
badhaaee!

M VERMA ने कहा…

शिल्पी यदि जतन करता ,
----
तब दीवारे बच जाती
दरकने से और
संभल जाता ये भवन ।
मकाँ यदि हिलने लगे तो कहीं न कहीं शिल्प में ही कमी है
बहुत सुन्दर रचना

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Mahfooz Ali ने कहा…

बहुत खूबसूरती से शब्दों के द्वारा रिश्तों को दिखाया है आपने....

kshama ने कहा…

Jyoti ji! Aaj to aapne kamaal hi kar diya! Wah!

Alpana Verma ने कहा…

रिश्तों के भवन भी कुछ ऐसे ही होते हैं ,स्नेह और विश्वास की नींव पर टिके.
गहन भाव लिए हुए यह बहुत ही अच्छी कविता है.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

ज्योति जी . शिल्पी कहीं सो न जाँय ।
प्रशंसनीय रचना ।

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन। बधाई।

रचना दीक्षित ने कहा…

सागर सी गहरी बात मन में भी हलचल पैदा कर गयी

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

जरा सी चूक में
टूट रहे सब बंधन ,
शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे बच जाती


बहुत सुन्दर।
कबीर भी पछताए कि ‘जतन बिनु मृगनु खेत उजारे’। कवि संपूर्णता में देखता है। वह बार बार अवलोकन और विश्लेषण करता है..जतन के मार्ग तलाशता भी है और तराशता भी है।
अंधों को ज्योति दिखाने का धन्यवाद ज्योति जी।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

क्या कहूँ .......?

इन रिश्तों को दरकने से बचाते बचाते ही ज़िन्दगी कट जाती है ......!!

बस कट ही जाती है ....जी नहीं जाती .......!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..


http://charchamanch.blogspot.com/

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शायद इसीलिए नीव का मज़बूत होना बहुत ज़रूरी होता है ... चाहे भवन हो या रिश्ता ....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

ज्योति जी...आपकी रचनाओं में दिन-प्रतिदिन पहले से कहीं ज़्यादा निखार आ रहा है...
बधाई स्वीकार करें...
जरा सी चूक में
टूट रहे सब बंधन..
ये चंद शब्द ही इसका प्रमाण हैं.

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

waah waah waah...
bahut hi kamaal ki rachna...
sambandhon ko bahut uchit bimb diya hai aapne...
aaj to main bas kuch kah nahi paa rahi hun..mujhe aapki rachna kitni acchi lagi...
BAHUT HI ACCHI...
SACH MEIN..!!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

कितना निखर रही हो आजकल अच्छा लग रहा हें.

मनोज भारती ने कहा…

शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे बच जाती
दरकने से और
संभल जाता ये भवन

स्नेह का अभाव व असमानता का प्रभाव ही तो दरका देता है रिश्तों का भवन...खूबसूरत रचना

Apanatva ने कहा…

bahut sunder gahare bhav liyeek adbhut rachanaa jo rishto ke nibh nahee pane ke karno par tavajju detee hai .

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) ने कहा…

बहुत खूब ||

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूबसूरती से शब्दों के द्वारा रिश्तों को दिखाया है आपने....