बुधवार, 2 मार्च 2011

शिकवा


उम्र गुज़र जाती है सबकी

लिए एक ही बात ,

सबको देते जाते है हम

आँचल भर सौगात ,

फिर भी खाली होता है

क्यो अपने में आज ?

रिक्त रहा जीवन का पन्ना

जाने क्या है राज ?

रहस्य भरा कैसा अद्भुत

होता है , क्यो अहसास ?

रोमांचक किस्से सा अनुभव

इस लेन-देन के साथ ,

गिले -शिकवे की अपूर्णता पे ,

घिरा रहा मन हर बार .

22 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सबको देते जाते है हम
आँचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यो अपने में आज ?
रिक्त रहा जीवन का पन्ना
जाने क्या है राज ?
बहुत सुंदर विचारणीय पंक्तियाँ........... संवेदनशील भाव...

kshama ने कहा…

Aapne bahut achhaa kiya jo phir se likhne lageen!
Bahut sundar hai rachana!

रचना दीक्षित ने कहा…

शिकवे शिकायतों से ही जीने का मज़ा दुगना हो जाता है. बहुत बढ़िया प्रस्तुति...हर हर महादेव..शिवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनायें.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, संभवतः जीना इसी का नाम है।

रजनीश तिवारी ने कहा…

जीना इसी का नाम है.. बहुत अच्छी प्रस्तुति

निर्मला कपिला ने कहा…

यही तो जीवन है। सुन्दर एहसास । बधाई।

Rakesh Kumar ने कहा…

कहते हैं "नेकी कर ,दरिया में डाल" वर्ना तो 'इस लेन देन के साथ ,गिले-शिकवे की अपूर्णता पे ,घिरा रहा मन हर बार.' की ही स्थिति बनी रहती है .
मन की उलझन को दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

ज्योति सिंह जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

जाने क्या है राज ?… अजी आदमी है :)
मेरे ख़ास अज़ीज़ मुझे राज़ कहते हैं … और मैं आदमी हूं …
हा ऽऽ हा ऽ हऽऽऽ

मजाक की बात थी यह तो , गंभीर हो जाते हैं …

सबको देते जाते है हम
आंचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यो अपने में आज ?
रिक्त रहा जीवन का पन्ना
जाने क्या है राज ?


प्रश्न स्वाभाविक है …
लेकिन हम जैसों के लिए उदास-हताश शब्द नहीं हैं …
हम सृजक देना ही जानते हैं …
नदिया न पिये कभी अपना जल !
वृक्ष न खाए कभी अपने फल !!


… और कहा भी है न , कि
अपने लिए जिये तो क्या जिये
तू जी ऐ दिल ! ज़माने के लिए …


सुंदर कविता है, अनेक विचार जाग्रत करने के लिए यह संक्षिप्त रचना पर्याप्त है …

बहुत बहुत बधाई !
हार्दिक शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

विशाल ने कहा…

बहुत उम्दा.

गिले -शिकवे की अपूर्णता पे ,
घिरा रहा मन हर बार

अपूर्णता का नाम ही जीवन है.
सलाम.

Arvind Mishra ने कहा…

प्रेम का तो अक्षय कोष है ,कहाँ रिक्त होगा यह ?

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति| धन्यवाद|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सारी बातें तो कविता में आ गईं.बस यही ज़िन्दगी है, ज्योति जी

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ज़िन्दगी शायद यूँ ही अपने सफ़र तय करती है ...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

jivan ki sachchaiyo tatha ahsason se bhari bahut hi sateek prastuti---
bahut behatreen---
poonam

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

रिक्त रहा जीवन का पन्ना .....

इस रिक्तता ने और रिक्त कर दिया .....

तस्वीर से नज़रें नहीं हटतीं .....

Rajesh Kumar 'Nachiketa' ने कहा…

जीवन के कई पहलुओं में से एक यह भी है..अपने बढियां चित्र उकेरा है...
नमस्कार.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बहुत बधिया प्रस्तुती. ये जीवन है...इस जीवन का यहि है रन्ग रूप.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... सच है जीवन में ऐसे पल आते हैं जब मन में रिक्तता आ जाती है ... कुछ ऐसे ही लम्हों को ले कर बुनी है रचना ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाजवाब वर्णन किया है यात्रा का ... लग रहा है आपके साथ ही इस यात्रा में हम भी शामिल हैं ...

Deepak Saini ने कहा…

यही तो जिन्दगी है
सुन्दर रचना के लिए
शुभकामनाये

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

yahi to hai zindgi !
sundar rachna.

Alpana Verma ने कहा…

दुविधाओं में घिरा व्यक्ति ऐसा ही सोचने लगता है अक्सर..
कशमकश के भाव मिले कविता में ....