धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
...................................................
ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
Gahan abhivykti..... Sanvedansheel prashn...
तेरी है न मेरी है दुनिया है ये फ़ानी
हम तो हैं उस जहाँ के जहाँ "तेरा" धाम है।
सुंदर अभिव्यक्ति.
वैसे बहुत पहले कबीर दास जी को भी ऐसा ही लगा होगा .इसलिए उन्होंने लिखा
"रहना नहीं देश बिराना है
यह संसार कागद की पुडिया
बूंद लगे घुल जाना है
यह संसार झांड और झाँखर
उलझ पुलझ मर जाना है "
सुन्दर रचना
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
सम्पूर्ण जीवन दर्शन को समाहित कर दिया इन पंक्तियों में ...आपका आभार
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
जीवन का ही मूल्य नहीं हैं,
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
...बहुत गहन चिंतन से परिपूर्ण सुन्दर रचना..
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
ek chinti ke jariye aapne apni rachna me bahut ankahe hi abhivyakt kar diya.
bhaut hi yatharth purn prastuti
bahut bahut dhanyvaad
poonam
ek chinti ke jariye aapne apni rachna me bahut ankahe hi abhivyakt kar diya.
bhaut hi yatharth purn prastuti
bahut bahut dhanyvaad
poonam
अनसुलझे प्रश्न ?
अच्छी रचना |
किंतु वर्तमान जीवनशैली के अंतर्द्वंद्व से उपजी आपकी कविता एक प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
यहाँ पता नहीं किसने ?? आपके बारे में कुछ लिखा है ।
यहाँ पता नहीं किसने ?? आपके बारे में कुछ लिखा है ।
सारी ब्लाग पता लिखना भूल गया था ।
http://yeblogachchhalaga.blogspot.com/
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सारी ब्लाग पता लिखना भूल गया था ।
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यहाँ भी आयें|
आपकी टिपण्णी से मुझे साहश और उत्साह मिलता है|
कृपया अपनी टिपण्णी जरुर दें|
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
bahut gambheer bhavabhivyakti.
jyoti ji ,
aapke blog ka parichay rajeev ji ne ''ye blog achchha laga ''par diya hai.[http://yeblogachchhalaga.blogspot.com] par aakar apne vicharon se kritarth karen.
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५