बुधवार, 17 जनवरी 2018

औरत

औरत

वो सवाल है वो जवाब है
वो खूबसूरत सा खयाल है ,
वो आज है वो कल है
हर समस्याओ का हल है ,
वो सहेली है वो पहेली है
दुनिया की भीड़ में अकेली है ।
वो मोती है वो ज्योति है
वो इस सृष्टि में अनोखी है ।
वो दर्द है वो मुस्कान है
सुख-दुख में एक समान है ।
वो सांसो का बंधन है
वो रिश्तों का संगम है ।
वो खुशबू है चंदन की
वो रौनक है आंगन की ।
मत समझो केवल 'निर्भया' उसे
पड़ी जरूरत तो वो अभया है ।

3 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता. लिखती रहो लगातार.

ज्योति सिंह ने कहा…

शुक्रियाँ वंदना

ज्योति सिंह ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रियाँ आपका