आदमी जिंदगी के जंगल में
अपना ही करता शिकार है ,
फैलाता है औरो के लिए जाल
और फसता खुद हर बार है । .......................
बहुत सही..पर मानव की प्रवृति हैं सोचता अपने अनुरूप ही है
धन्यवाद संजय
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2 टिप्पणियां:
बहुत सही..पर मानव की प्रवृति हैं सोचता अपने अनुरूप ही है
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