पानी पर लकीर खींच रही हूँ ,
बात बनने की तसल्ली लिए
ना समझ बन रही हूँ ,
जल की धाराओ में
रास्ता देख रही हूँ ,
नादान बनकर लहरों पे
स्वप्न बुन रही हूँ ,
आपे से बाहर होकर
तारे तोड़ने की कोशिश आसमान से ,
इस तरह हर असंभव कल्पना को
साकार कर रही हूँ ।
9 टिप्पणियां:
कल्पना करने वाले ही तारे तोड़ लाते है
aapki kalpana shakti ko salam
अगर कल्पना न हो तो जीवन ही नहीं............. लाजवाब लिखा है आपने
दिल में हौसला हो तो तारे भी तोड ही लेंगे हम..शानदार.
pani par lakeer........
bahut hi sunder rachna hai.......
badhai.........
आप सभी लोगो का तहे दिल से शुक्रिया जो आकर हौसला बढाया .
khoobsurat abhivyakti.
मैं जब ये कविता लिख रही थी तो सोंच ही रही थी कि आपकी इस पर टिप्पणी अवश्य आएगी इस सच पर मुस्कुरा उठी ,शुक्रिया .स्वपन जी .
nice
jab asambhav ko sambhav karne ke hausle honge tabhi to sapne sach hongen...
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