शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

उलझन ....

कार्य जब हमारे वश का नही ,

पड़ती है जरूरत साहस की ,

चाह कर भी उठे जब

कदम किसी संशय में ,

उलझन भरा वह पल ,

फिर किसी कसौटी से

कम नही ,

घिर जाये निर्णायक यदि

दुविधापूर्ण चिंतन में ,

तो देती परिस्थति गवाही

वहां जीवन - संघर्ष की

9 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Behad sanjeeda rachna...anubhav se nikle udgaar hain! Mere blogs pe aapne behad pyarbharee tippaniyan dee hain..abhibhoot kar diya!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत बढिया.

Apanatva ने कहा…

jeevan me dwand uljhane sabhee apanee apanee bhageedaree rakhate hee hai. inase chutkara nahee sath sath hee chalate hai badee acchee rachana .






'

मनोज कुमार ने कहा…

घिर जाये निर्णायक यदि
दुविधापूर्ण चिंतन में ,
तो देती परिस्थति गवाही
वहां जीवन - संघर्ष की ।
बहुत सही कहा आपने।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut khoob.

रचना दीक्षित ने कहा…

घिर जाये निर्णायक यदि
दुविधापूर्ण चिंतन में ,
तो देती परिस्थति गवाही
वहां जीवन - संघर्ष की

हर एक शब्द बोलता हुआ, अपनी बात को पुरजोर तरीके से सामने रखता हुआ और हमें इस जीवन संघर्ष में सतत प्रयासरत रहने की प्ररणा देता हुआ
बधाई स्वीकारें
रचना

ज्योति सिंह ने कहा…

aap sabhi ko main man se shukriyaa karti hoon .

Alpana Verma ने कहा…

sach mein aisee parishtiyon mein hi insaan ki pariksha hoti hai.

jagmohan ने कहा…

मैं इस उलझन में हूं की मैं किस तरह से काव्यांजलि में अपनी कविताएं प्रकाशित करू....कुछ समझ नहीं पा रहा हूं....क्या आप लोग मदद कर पायेगे....आज़ाद...