मन की वापसी

जब -जब छलनी हुआ मन

दर्द से भरा मेरा ये दामन ,

फिर भी खुद को बहलाती रही

गुजरे वक़्त को समझाती रही ,

तू आज मेरा सही

कल तो होगा कभी ,

पर आंसू से वो उठी टीस

उम्मीद भी टूटी कहीं ,

आह चीखी -दुख हुआ

पर मौन हो ,सिसकती रही

जिस पर चलने की

मेरी कोशिश रही ,

शायद ये रास्ते मेरे नहीं ,

वापस मन को शून्य कर

परिधि में चक्कर लगाती रही

टिप्पणियाँ

मनोज कुमार ने कहा…
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
Apanatva ने कहा…
aapko apna vada yad hai na ?........
fir dilko choo gaee aapkee rachana ........
ज्योति जी मन को बहलाने का ही तो ये हश्र हुआ है. कि हम शून्य में ही रहते है और अपनी ही परिधि में घूमते रहते हैं. जाने हमे यहाँ से बाहर आने का रास्ता नहीं मिलता या खुद ही आना नहीं चाहते? बहुत मार्मिक
बधाई
ज्योति सिंह ने कहा…
manoj ji ,apanatva ji avam rachna ji shukriya ,apanatva ji vaada bilkul yaad hai aur uski taiyaari me hoon jald hi nibhane ki koshish hai .ye sabhi antraal me daal rahi hoon .
दिल को छू गयी आपकी ये रचना..बहुत सुंदर भावो से सजयाया है और एक सुंदर रूप दिया है रचना को..मन की पीड़ा को उकेरती आपकी ये रचना अच्छी है. बधाई.
Apanatva ने कहा…
मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
Yogesh Verma Swapn ने कहा…
dilko chhooti rachna.wah.
RAJ SINH ने कहा…
सच तो है ......
अपरिमित फैलाव परिधियों का हो फिर भी मन शून्य .

सुन्दर मनभाव !
शोभना चौरे ने कहा…
उम्मीद का दमन कभी न छोडना.
kshama ने कहा…
Shayad sabhee ka man paridhiyonke chakkar kaat leta hai..
Apanatva ने कहा…
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
bahut dino se koi rachana nahee.....?
tabiyat to theek hai na....................?
with best wishes..................
निर्झर'नीर ने कहा…
anamika JI SE SAHMAT HUN

SUNDAR BHAVPOORN RACHNA.

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