उड़ न जाये



ऐसे कब तक हम भरमाये


मन को कहाँ तक भटकाए ,


कोई राह तो आये सामने


ख्याल क्यों उलझते जाये ,


आगे कुआं पीछे खाई


कही इनमे हम गिर जाये ,


फंसकर गर्द की भंवर में


डर है कही उड़ जाये

टिप्पणियाँ

राज भाटिय़ा ने कहा…
आगे कुआं पीछे खाई

कही इनमे हम गिर न जाये ,

फंसकर गर्द की भंवर में

डर है कही उड़ न जाये
बहुत सुंदर भाव
धन्यवाद
ज्योति जी आदाब
सच कहा...
ये भ्रम की स्थिति ही इन्सान को परेशान करती है..
बहुत सुन्दर रचना..बधाई
Apanatva ने कहा…
sunder bhavo kee abhivyktee.......
Alpana Verma ने कहा…
कभी कभी ऐसी स्थिति भी आ जाती है जब भय और भ्रम दोनों ही पस्त कर देते हैं.
अच्छी रचना
Simply Poet ने कहा…
bahut hi badiya sir
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do login and post...takki sabhi ko aapki khoobsurat karigari padne
ka mauka miley ..aur logon ko pata chalee ke aapke jaise kavi abhi tak blogging karte hain!!
बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द, गहरी बात
paristhitiyon ke bhanwar me padkar aisa hi lagta hai, bahut badhiyaa chitran
जोरदार रचना
बहुत बहुत आभार...............
अक्सर मन जब भटकता है ... ऐसे बहुत से सवाल पीछा करते हैं ... लाजववब लिखा है आपने ...
रविंद्र "रवी" ने कहा…
बहुत सुन्दर रचना कि है ज्योतिजी आपने! बहुत खूब!
ज्योति सिंह ने कहा…
shukriyaan tahe dil aap sabhi logo ka ,aabhari hoon jo amulya samya nikal meri rachna ko saraha .

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