कथा सार
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
टिप्पणियाँ
धन्यवाद
बधाई.
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
aabhar
अच्छी रचना.
Ramnavmiki anek shubhkamnayen!
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
हमें पन्ने पलटने पड़ते है ,
फाड़कर रद्दी की टोकरी में
फेंकने पड़ते है ,
सही रंग की तलाश में ।
jaane kitni baar aisa hota hai sahi rang ki talaash mein..
अक्सर ऐसा ही होता है....