बदल गये ......
इतने जख्म मिले कि अब संभल गये
बात अब तुममे वो नही ,बदल गये ।
एतबार के सहारे सफ़र आगाज़ किया
जो छूट गया तुमसे तो ,हम थम गये ।
फासले बढ़ते - बढ़ते .मिट गये कही
रिश्ते जो दरम्यान रहे ,नही रह गये ।
मौत को ढकेल जिजीविषा बढ़ गयी
रात बड़ी और दिन अब सिमट गये ।
गमे-जुल्म जिंदगी पे ढाते कब तलक
तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये ।
टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर रचना है लेकिन मेरे ख्याल में ये इससे भी सुन्दर बन सकती है, यदि शब्दों का थोडा फेरबदल किया जाए.
तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये ।
Atyant bhavpurn aur umda prastuti.Tasveer bhi mohak hai.Shubkamnayen.
गमे-जुल्म जिंदगी पे ढाते कब तलक
तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये
ऐसा ही होता है वक़्त की दौड़ में .... जीवन की सच्चाई बयां करती कविता .....
तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये ।
bahut gahre bhav liye hai har pankti...........
bahut sunder abhivykti......
अभिवंदन
"बदल गए " ग़ज़ल पढ़ी,
अच्छा लगा.
"एतबार के सहारे सफ़र आगाज़ किया
जो छूट गया तुमसे तो, हम थम गये "
उपरोक्त शेर बहुत अच्छा कहा है आपने.
- विजय तिवारी ' किसल