दर्द अहिस्ता आहिस्ता ही आता है...कभी बिना आहट भी ...और चुपके से कब अपना राज कायम कर लेता है ..मालूम ही नहीं चलता . बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है .छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
ओस की एक बूँद नन्ही सी चमकती हुई अस्थाई क्षणिक रात भर की मेहमान ___ जो सूरज के आने की प्रतीक्षा कतई नही करती , चाँद से रूकने की जिद्द करती है , क्योंकि दूधिया रात मे उसका वजूद जिन्दा रहता है , सूरज की तपिश उसके अस्तित्व को जला देती है ।
टिप्पणियाँ
हम इसकी आमद से
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा
बहुत बढ़िया ज्योति जी
बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है .छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..
ज्योति जी, दर्द को आपने बखूबी समझा है।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्य… ।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा
क्या बात है..... !
बहुत बढ़िया....!!
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बहुत सुन्दर.
बहुत बढ़िया....!!