धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
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ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
हम इसकी आमद से
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा
बहुत बढ़िया ज्योति जी
बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है .छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..
ज्योति जी, दर्द को आपने बखूबी समझा है।
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स्टोनहेंज के रहस्य… ।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा
क्या बात है..... !
बहुत बढ़िया....!!
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बहुत सुन्दर.
बहुत बढ़िया....!!