दर्द अहिस्ता आहिस्ता ही आता है...कभी बिना आहट भी ...और चुपके से कब अपना राज कायम कर लेता है ..मालूम ही नहीं चलता . बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है .छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
शाम से लेकर सुबह का इन्तजार इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार । फासले बढ़ते रहे लेकर तेज रफ़्तार बेताबी करती रही दिल को बेकरार । मिटने लगी दूरियाँ आने से उसके आज बढ़ने लगी बैचेनियाँ हर आहट के साथ । नजदीकियां करने लगी ख़ामोशी इख्तियार देखकर हम उनको सामने करेंगे क्या बात । मिनटों में यहाँ आये कितने सारे ख्याल फुर्सत में भी रहे जिनसे हम बेख्याल । जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
टिप्पणियाँ
हम इसकी आमद से
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा
बहुत बढ़िया ज्योति जी
बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है .छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..
ज्योति जी, दर्द को आपने बखूबी समझा है।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्य… ।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा
क्या बात है..... !
बहुत बढ़िया....!!
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बहुत सुन्दर.
बहुत बढ़िया....!!