चंद सवाल है जो चीखते ......
तेरे मेरे दरम्यान सभी रास्ते यकायक बंद हो गये
क्या कहे ,न कहे हम इस सवाल पर ठहर गये ।
हम जानते है ये खूब ,दगा फितरत मे नही तुम्हारे
कोशिश तो की मिटाने की ,मगर दाग फिर भी रह गये ।
हर उदासी मे बढ़कर तुम्हे गले लगाना चाहा
कुछ चुभने लगा तभी ,और कदम ठहर गये ।
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
हर बात गहरे यकीन का अहसास दिलाती है
पर वो नही कभी कर पाये जो तुम कह गये ।
36 टिप्पणियां:
दर्द और कसक भरी रचना .....
चंद सवाल बहुत परेशान किया करते हैं...
अच्छा लिखा है ज्योति .
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
कविता पढ कर एक ठंडी आह दिल से गहरे निकली... बहुत अच्छी रचना.
उम्दा रचना.
दगा और दाग.बहुत सुन्दर.
और सब से बढ़िया शेर...
सब खामोशी में दब कर रह गया
मगर चंद सवाल हैं जो चीखते रह गए
आपकी कलम को सलाम.
आदरणीय ज्योति जी
नमस्कार !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
कविता के भाव बड़े ही प्रभाव पूर्ण ढंग से संप्रेषित हो रहे हैं !
आभार!
......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
दर्द की चीत्कार सी लगी यह रचना ..
वेदना भरी रचना।
Wah! Bahut khoob!Waaqayi kuchh sawaal cheekhte rah jate hain!
कुछ अहसासों की सहज अभिव्यक्ति
विचारों और भावनाओं के बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति..
प्रणाम.
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये
दर्द और कसक का अहसास कराती सुन्दर रचना.
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
बहुत सुन्दर !
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये
क्या बात है वह ख़ामोशी भी कैसी है जिसमें सवालों की चीख भी सुनाई नही दी बहुत अच्छी रचना , बधाई
बहुत पीड़ा है अंतर्मन की इस कविता में पर कई बार सोचती हूँ की अगर ये कुछ प्रश्न चीख चीख कर न बुलाएँ तो कुछ बाते जरुरी होते हुए भी दिमाग से निकल जाती हैं
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ....
इन सवालों की खोज ही तो जीवन है ....
प्रेम हो तो ये सवाल नहीं आते ....
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
बहुत सुन्दर है ज्योति.
....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं।
बधाई स्वीकारें।
jyoti ji
deri se aane ke liye maafi , bahut dino baad aaya hoon .
itni acchi rachna hai , man ki udaasi ko aur gahra kar gayi hai ..
Badhayi
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना । कभी कुछ कहते नहीं बनता, कभी कुछ करते नहीं बनता , कभी चलते नहीं बनता , कभी रुकते नहीं बनता !
शुभकामनाएँ !
Ajit Gupta ji ki post per aapki tippani dekh aapki post per aana hua.Aapki post bhavanao ki sunder abhivyakti hai."Rahiman dhaga prem ka mat dijo chatkaay,toote se bhi na jude, jude ghaanth pad jaaye" aapka yeh likhna 'koshish to ki mitaane ki,magar daag phir bhi reh gaye' shaayad isi aur ingit karta hai.
Mere blog 'Mansa vacha karmana' per aapka swaagat hai.
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
मन की वेदना को सुंदर शाब्दिक अर्थ दिए हैं आपने ...बेमिसाल हैं सारी पंक्तियाँ
हर उदासी मे बढ़कर तुम्हे गले लगाना चाहा
कुछ चुभने लगा तभी ,और कदम ठहर गये ।
बहुत अच्छी रचना.
सब खामोशी में दब कर रह गया
मगर चंद सवाल हैं जो चीखते रह गए
सब कुछ स्वयं जिया हुआ सा लग रहा है !
आपने जिस खूबसूरती से हर पंक्तियों में संवेदना की अंतिम गहराई को स्थापित किया है वह काबिले तारीफ है !
आभार !
):):
फिर वही बेलफ्ज़ हैं मेरे सवाल ..
के तू है भी मेरा और मैं तेरी नहीं .....
aap sabhi mitro ko dhanyawaad ,dil se aabhari hoon sabki .
चन्द सवालों में उलझी जिन्दगी का बहुत मार्मिक और सुन्दर चित्रण आपकी रचना में मिला। आभार।
वेदना को व्यक्त करना आसान नहीं होता ...
शुभकामनायें आपको !
आपकी सभी रचनाएं अच्छी लगी.....
सब खामोशी में दब कर रह गया
मगर चंद सवाल हैं जो चीखते रह गए
बहुत अच्छी रचना
bahut sundar rachnaa ..bhaavon se ot prot... dard me doobi..
aapki prastuti kal charchamanch me hogi... aap bhi vahan aayen aur apne vichaar rakhen...
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत ही खूबसूरत रचना है ज्योति जी !
सब कुछ खामोशी में दब कर तो रह गया,
मगर चंद सवाल हैं जो चीखते रह गये !
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है ! आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ ! अफ़सोस हो रहा है इतनी देर से क्यों आई ! बहुत सुन्दर रचना है ! बधाई !
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह गये ।
और उस चीख को आज तक मुकाम नही मिला………………
क्या सुनाई देती है तुम्हें …………एक बेहतरीन शब्द रचना के लिये हार्दिक बधाई।
हम जानते है ये खूब ,दगा फितरत मे नही तुम्हारे
कोशिश तो की मिटाने की ,मगर दाग फिर भी रह गये ।
बहुत खूब ...सुन्दर प्रस्तुति
ज्योति जी ,
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' की नई पोस्ट "मो को कहाँ ढूंढता रे बंदे" पर आपके
बहुमूल्य वैचारिक दान की अपेक्षा है .
jyoti ji aap mere blog par aaye bahut hi achha laga.
bahut hi umda rachna jo bahut kuchh
kahti hui dil me utar gai.
badhai------
poonam
आपकी सभी रचनाएं अच्छी लगी| धन्यवाद|
वो रोये तो मुहं मोड़ कर रोये
कोई मज़बूरी होगी जो दिल खोलकर रोये
मेरे सामने टुकड़े कर दिए मेरी तस्वीर के
बाद में पता चला के उन्हें जोड़ के रोये |
दर्द को दर्शाती रचना |
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