शुक्रवार, 26 मार्च 2010

दुर्दशा .........

धूल में सने हाथ

कीचड़ से धूले पाँव ,

चेहरे पर बिखरे से बाल

धब्बे से भरा हुआ चाँद ,

वसन से झांकता हुआ बदन

पेट ,पीठ में कर रहा गमन ,

रुपया ,दो रुपया के लिए

गिड़गिडाता हुआ बच्चा -फकीर ,

मौसम की मार से बचने के लिए

आसरा सड़क के आजू -बाजू ,

भूख से व्याकुल होता हाल

नैवेद्य की आस में बढ़ता पात्र

ये है सुनहरा चमन

वाह रे मेरा प्यारा वतन

अपने स्वार्थ में होकर अँधा

करा रहा भारत दर्शन

"जहां डाल -डाल पे सोने की

चिड़ियाँ करती रही बसेरा "

बसा नही क्यों फिर से

वो भारत देश अब मेरा

15 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

marmik chitran tathy ka...........

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह!! शानदार प्रस्तुति..एक बेहतरीन रचना!

kshama ने कहा…

Bahut sundar rachana...ek Hindustanika dard hai yah..aao milke ise ghata saken to ghta den!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर रचना. हिन्दुस्तान अनूठा देश है, चंद खामियां दूर हो जायें तो एक बार फिर स्वर्णयुग लौट आये.

रचना दीक्षित ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें

BrijmohanShrivastava ने कहा…

प्रथम छै:: लाइन में उस बच्चे का दयनीय चित्रण (शायद इसे ही कहते होंगे द्रश्य काव्य ,पढ़ते पढ़ते द्रश्य दिखने लगे )|नैबेध्य की जगह दूसरा कोइ शब्द आजाता तो ठीक था वैसे साहित्य के द्रष्टि से यह शब्द भी ठीक है | देश दुर्दशा का दयनीय द्रश्य दिखलाती रचना |

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

"जहां डाल -डाल पे सोने की चिड़ियाँ करती रही बसेरा "
बसा नही क्यों फिर से वो भारत देश अब मेरा....

ज्योति जी, ये समय भी बदलेगा, और फिर से ये देश सोने की चिड़िया बनेगा....विश्वास रखिये.
सुन्दर....रचना.

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut sunder abhivyakti.

मनोज भारती ने कहा…

भारत की दुर्दशा को बयां करती एक अच्छी अभिव्यक्ति !!!

के सी ने कहा…

सुन्दर....रचना.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

एक बेहतरीन रचना कह कर बच नहीं सकता.. कुछ कमियाँ लगीं मुझे अपनी नज़र में(खैर जब खुद ही कच्चा हूँ तो आप को क्या कहूं) कुछ शिल्प की कमी लेकिन भावों के आगे नतमस्तक हूँ. बाकी सब ठीक है.

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

ज्योति जी,
मार्मिक चित्रण ,
ये समस्याएं व्यवस्था के कारण हैं ,लेकिन आज भी हमारा वतन जितनी सुंदरताओं ,ख़ूबियों और विविधताओं के साथ संसार के सामने सर उठा कर खड़ा है ये मामूली बात नहीं

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

jhakjhor dene wali rachna.lekin ummeedo ka gaman nahi hua he isliye kehti hu...ham honge kaamyaab ek din...pura he vishwas....

kshama ने कहा…

Manme hai wishwas ham honge kaamyaab!
Aapki kayi rachnayen dobara padhne ka man karta hai...

निर्झर'नीर ने कहा…

अच्छी मार्मिक अभिव्यक्ति !!!