संगदिल
तुम तो पत्थर की मूरत हो
नज़र आते , अजंता की सूरत हो ,
जहां प्रेम तो झलकता बखूबी
पर अहसास नही जिन्दा कही भी ,
हर बात बेअसर है तुम पर
जो समझ से मेरे है ऊपर ,
हर बात पे आसानी से कह जाते
कोई फर्क नही पड़ता हम पर ,
इस हाड़ मांस के पुतले में
दिल तो नही ,रह गया कही पत्थर ?
तुम कह गए और हम मान गये
यहाँ बात नही होती ,पूरी दिलबर ,
क्या ऐसा भी संभव है
यह प्रश्न खड़ा ,मेरे मन पर ,
छोड़ो अब इसे जाने दो ,देखेंगे
क्या होगा आगे आने पर ।
टिप्पणियाँ
antr dvnd krta nirnayk man .achi abhivykti.
फ़ूल से एहसासों के पीच्हे शूल भी हो सकता है ।
छोड़ो अब इसे जाने दो ,देखेंगे
क्या होगा आगे आने पर ।
बहुत गहरे भाव लिये हैआप की यह रचना.
धन्यवाद
देखेगें क्या होगा आगे आने पर ....
कोई दर्द छुपा है पंक्तियों में जो भोगने के लिए तैयार खडा है ......!!
मन के किसी कोने को झंकृत सी करती रचना .
- विजय
क्या होगा आगे आने पर ।
..एक गहन आशावाद, बेफ़िक्री, बेतकल्लुफ़ी और आत्मविश्वास !!!
नज़र आते , अजंता की सूरत हो ,
जहां प्रेम तो झलकता बखूबी
पर अहसास नही जिन्दा कही भी...bahut gahre bhav liye ye aapki rachna jaise kisi se sikyat kar rahi hai..wo bhi itne mithi bhasa me....mere blog par aapka swagat hai...