jyoti ji aap ki ek aur behtreen rachana.apni kavita ki kuch laine likh rahi hun jo vishesh kar baadal aur varsha par likhi hai dhanyvad जिगरे नासूर से रह-रह के रिसता ये बादल. ये बादल नहीं अवसाद है,किसी का जो मन को भिगोये,ये अहसास है उसी का
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
शाम से लेकर सुबह का इन्तजार इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार । फासले बढ़ते रहे लेकर तेज रफ़्तार बेताबी करती रही दिल को बेकरार । मिटने लगी दूरियाँ आने से उसके आज बढ़ने लगी बैचेनियाँ हर आहट के साथ । नजदीकियां करने लगी ख़ामोशी इख्तियार देखकर हम उनको सामने करेंगे क्या बात । मिनटों में यहाँ आये कितने सारे ख्याल फुर्सत में भी रहे जिनसे हम बेख्याल । जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
टिप्पणियाँ
'नासूर 'हो जाते है
बहुत सुंदर लिखा आप ने,
'नासूर 'हो जाते है...
KAMAAL KA LIKHA HAI .. KUCH JAKHM POORI UMR RISTE RAHTE HAIN ...
साधारण शब्दों से असाधारण बात कही है .
'नासूर 'हो जाते है...
वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ है! बिल्कुल सही कहा है आपने! इस ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई !
dhanyvad
जिगरे नासूर से रह-रह के रिसता ये बादल.
ये बादल नहीं अवसाद है,किसी का
जो मन को भिगोये,ये अहसास है उसी का