रविवार, 15 नवंबर 2009

नासूर

कुछ कांटे कुछ बातें

हर पल खटकते है ,

दिल को सोचने पर

जो मजबूर करते है

अगर समय पर इन्हे

नही निकाला जाए ,

तो जख्म इसके फिर

'नासूर 'हो जाते है

12 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

तो जख्म इसके फिर
'नासूर 'हो जाते है
बहुत सुंदर लिखा आप ने,

M VERMA ने कहा…

नासूर बनने से पहले इन्हे निकाल लिया जाये तो अच्छा

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तो जख्म इसके फिर
'नासूर 'हो जाते है...

KAMAAL KA LIKHA HAI .. KUCH JAKHM POORI UMR RISTE RAHTE HAIN ...

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

BILKUL THEEK. UCHIT.

padmja sharma ने कहा…

ज्योति जी ,
साधारण शब्दों से असाधारण बात कही है .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

achhi rachna

मनोज कुमार ने कहा…

achchhi rachana.

Urmi ने कहा…

तो जख्म इसके फिर
'नासूर 'हो जाते है...
वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ है! बिल्कुल सही कहा है आपने! इस ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई !

sandhyagupta ने कहा…

Is arthpurn rachna ke liye badhai.

रचना दीक्षित ने कहा…

jyoti ji aap ki ek aur behtreen rachana.apni kavita ki kuch laine likh rahi hun jo vishesh kar baadal aur varsha par likhi hai
dhanyvad
जिगरे नासूर से रह-रह के रिसता ये बादल.
ये बादल नहीं अवसाद है,किसी का
जो मन को भिगोये,ये अहसास है उसी का

ज्योति सिंह ने कहा…

aap sabhi logo ka tahe dil se shukriyaan jo aakar mere hausle ko badhaya

अनूप शुक्ल ने कहा…

सही है! इलाज में देरी न करें!