शनिवार, 6 मार्च 2010



कुछ इज़हार है ,कुछ इकरार है ,


अहसासों का ये दरबार है ,


चाहो तो , कुछ तुम भी कह लो ,


दिल के बोझ को कम कर लो ,


फिर ऐसे मौके कब आयेंगे ,


जहाँ हाल दिल के कह पायेंगे ,


दोष देना ऐसे मौके को ,


ये खता ख़ुद से होने दो

10 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर भाव लिये है आप की यह रचना.
धन्यवाद

ज़मीर ने कहा…

सुन्दर भाव , सुन्दर कविता.

शमीम ने कहा…

महोदया आपकी लिखी यह रचना अच्छी लगी.
शुभकामनायें .

मनोज भारती ने कहा…

क्या ब्लॉग जगत में भी कुछ ऐसा ही नहीं हो रहा ?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

चाहो तो , कुछ तुम भी कह लो ,
दिल के बोझ को कम कर लो..

सच है गुबार निकल जाने पर सब कुछ सामान्य हो जाता है ... अच्छी रचना है ..

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

aapki kavita padhkar achha laga....

aapke ye line achha laga..."ehsason ka yedarbar hai"

संजय भास्‍कर ने कहा…

bhaut hi sunder rachna...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद

के सी ने कहा…

खूबसूरत,
ऐसे मौके कब आयेंगे ?

Apanatva ने कहा…

sunder bhav sunder abhivykti mai bhee avsar nahee khona chahtee izhaar ka.meree koshish rahegee aapse milne kee meree sasural Jhansi hai aapka shahar door nahee .......:)