कल गांधी जी एवं शास्त्री जी जैसे दो महापुरुषों की जन्मतिथि है .उन्हें शत -शत मेरा नमन .उनकी तरह मैं भी सर्वोदय की कल्पना लिए आगे बढती रही .और अच्छा देने और करने के प्रयास में सदा जुटी रही और साथ ही सबसे यही कामना करती हूँ .इसलिए मेरे सामने जब देने -लेने का सवाल उठता है तो मैं मौन हो जाती हूँ क्योंकि जो चाहिए वो अमूल्य है और शायद न मिले .इसलिए कुछ और लेने से मना कर देती हूँ .सब की शिकायत यही रहती है हमें इतना देती हो लेती नहीं कुछ .और मैं सोचने लगती कि देने वाला लेने क्या जाने ?जो चाहिए मिलेगा नहीं ,पर आज सोची इस रचना द्वारा जाहिर कर दूं ,अपनी इच्छा सबसे कह दूं -----------------
सब पूछे मुझसे ,मैं क्या चाहूँ
पर जो मै चाहूँ ,कैसे पाऊं ?
दोगे वो क्या जो मैं चाहूँ
पर नामुमकिन को कैसे मांगू ,
अपने से आगे न सोचे
सच्चे मन से न बोले ,
व्यर्थ अधिकार ले मन
इत-उत फिर क्यों डोले ,
जीवन व्यर्थ लुटा कर
क्या हासिल कर डालू ,
कर्तव्य -बंधन मेरे भी
कुछ तो कम नहीं ,
मानव उपवन रहे महकता
सतत् प्रयत्न ये सदा रही ,
तुम बंधन -मुक्त होकर
एक पौधे की जड़ तो जमाओ ,
समानता -एकता की देकर कोशिश
सब को सब दे जाओ ।
इस कोशिश की सफलता पे
स्वयं सभी मिल जाएगा ,
जो तुम चाहो जो मै चाहूँ ।
जीवन-अमृत के सार गर पा जायेंगे ,
मिलकर सभी इस मातृ -धरा पर ,
सब पूछे मुझसे ,मैं क्या चाहूँ
पर जो मै चाहूँ ,कैसे पाऊं ?
दोगे वो क्या जो मैं चाहूँ
पर नामुमकिन को कैसे मांगू ,
अपने से आगे न सोचे
सच्चे मन से न बोले ,
व्यर्थ अधिकार ले मन
इत-उत फिर क्यों डोले ,
जीवन व्यर्थ लुटा कर
क्या हासिल कर डालू ,
कर्तव्य -बंधन मेरे भी
कुछ तो कम नहीं ,
मानव उपवन रहे महकता
सतत् प्रयत्न ये सदा रही ,
तुम बंधन -मुक्त होकर
एक पौधे की जड़ तो जमाओ ,
समानता -एकता की देकर कोशिश
सब को सब दे जाओ ।
इस कोशिश की सफलता पे
स्वयं सभी मिल जाएगा ,
जो तुम चाहो जो मै चाहूँ ।
जीवन-अमृत के सार गर पा जायेंगे ,
मिलकर सभी इस मातृ -धरा पर ,
स्वर्ण बीज फिर बो पायेंगे ,
कोशिश का फल जो पाऊँ ,
फिर अधिकार जमाऊँ ,
मानवता की अमूल्य भेंट पर ,
संस्कृति के नूतन परिवर्तन पर ,
मै भी कलम चलाऊँ ,
एक इतिहास नया रच जाऊँ ।
5 टिप्पणियां:
नया इतिहास रच जाऊं,संस्क्रति के नूतन परिवर्तन पर कलम चला कर,मानवता की अमूल्य भेंट पर भी ।सर्वे भवन्तु सुख की विचारधारा से लिखी गई रचना ,वह भी बापू के जन्म दिन पर ।सब का मिलजुल कर स्वर्ण बीज बोने की कल्पना ,समानता और एकता के साथ ,महकता रहे मानव उपवन और करता रहे प्राप्त जीवन अम्रत के सार ।साहित्य में सत और हित निहित होते हैं एसा साहित्य न सिर्फ़ जन हिताय ही होता है वरन अमर भी होता है
brijmohan ji bahut hi dhanyawaad .
ज्योति जी आपने हमे फिर से बहुत कुछ दे दिया
दो महान विभूतियों के जन म दिवस पर बहुतसुन्दर
अभिव्यक्ति
abhar
Rachnake kya kahne? Meree qabiliyat nahee...lekin 'ek sawal tum karo' pe Ismat kee rachnape jo kavymay tippanee aapne dee hai wo lajawaab hai...!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
shobhna ji aur shama ji bahut bahut shukriyan ,tahe dil se aabhari hoon .
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