शुक्रवार, 15 मई 2009

एक वो रात

वो राते लम्बी होती है ,
जब तन्हाई डसती है ,
यादे बोझिल होती है ,
तब ये नीँद कहाँ पे सोती है ,
ये रात जो मुझ पे भारी है ,
आंखों -आँखों में कटती है ,
करवट की आहट होती है ,
लिए दर्द मचलती रहती है ,
नीँद को तलाशते ,
आँखों में सुबह होती है

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