कभी -कभी अतीत होता है
इतना भयावह कि
दुःख -दर्द के मेल का
हरेक वाक्या दिल
दहला जाता है ।
पलट कर देखो तो
आंसुओ का मंजर ही
नज़र आता है ।
'मैं ' का स्थान शून्य होता
मर्यादाओ के बोझ तले ,
'हम ' का अस्तित्व जटिल हुआ
आंसुओ और आहो के खेल में ।
'मैं ' जहां 'हम ' तक
नही बन पाता है ,
रिश्तों की बुनियाद को भी
यही व्यक्तिवाद
हिला देता है ।
14 टिप्पणियां:
रिश्तों की बुनियाद ........... अपने अपने मैं को भुला कर हम की नीव पर ही खड़ी होती है ......
एक बेहतरीन रचना ......
ज्योति जी
भाव अच्छे हैं . कोई भी मुरीद हो जाए . 'मैं' का 'हम' बन जाना पानी में चीनी की तरह घुल जाना ही होगा शायद .तब बच जाता है पानी . चीनी मिठास देकर विलीन हो जाती है . यानी एक का अस्तित्व ख़त्म .
कभी -कभी अतीत होता है
इतना भयावह कि
दुःख -दर्द के मेल का
बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता
'मैं ' का स्थान शून्य होता
मर्यादाओ के बोझ तले ,
'हम ' का अस्तित्व जटिल हुआ
आंसुओ और आहो के खेल में
ज्योति जी मैं और हम की इस जंग में हमें बहुत कुछ सीखने को मिला है . इस रचना के लिए बधाई
सादर रचना
'मैं' 'और' हम की कशमकश को अभिव्यक्ति करती गहन अभिव्यक्ति ।
रिश्तों की बुनियाद को भी
यही व्यक्तिवाद
हिला देता है ।
bahut si vythaye kah gai ye pnktiya .
bahut achhi rachna.
rishton ki buniyaad........... bahut sunder abhivyakti , jyoti ji , badhaai...
rishtoN ki buniyaad
aur rishtoN ki sachchaaee
ki steek paribhaashaa
ek achhee rachnaa .
वाह ज्योति जी आपने बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है! रिश्ते हमारी ज़िन्दगी का एक एहम हिस्सा होता है और हम सब यही कोशिश करते हैं की हर रिश्ते को बखूबी निभाए!
Sundar aur arthpurn abhivyakti.Badhai.
shukriyaan aap sabhi logo ka jo aakar mere hausle ko badhaya
कभी -कभी अतीत होता है
इतना भयावह कि
LAJWAAB LINE
shukriyaan aap sabhi mitro ka jo aakar yahan hausala badhayaa
behatriin rachna
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