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सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छोटी छोटी रचनाये

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जिंदगी यूं ही गुजरती है यहाँ दर्द के पनाहों में , क्षण -क्षण रह गुजर करते है पले कांटो भरी राहो में । .................................................... हर दिन गुजर जाता है वक़्त के दौड़ में , आवाज विलीन हो जाती है इंसानों के शोर में । ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, वफ़ा तब मोड़ लेती है जमाने के आगे , न जलते हो कोई जब उम्मीदों के सितारे । ===================== उन आवाजो में पड़ गई दरारे जिन आवाजो के थे सहारे । >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> अपनो के शहर में ढूँढे अपने , पर मिले पराये और झूठे सपने । अनामिका के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ , जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है ।

आपसी द्वेष

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रिश्तों के आपसी द्वेष , परिवार का समीकरण ही बदल देते है , घर के क्लेश से दीवार चीख उठती है , नफरत इर्ष्या दीमक की भांति , मन को खोखला करती है , ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ क़यामत का इन्तजार करती कटती है । और विश्वास चिथड़े से लिपट सिसकियाँ भरती है ।

याचना

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आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम ढलते सूरज को करके सलाम , कल सुबह जो आओगे लपेटे सुनहरी लालिमा तुम , आशाओं की किरणे फैलाना मंजूर करे जिससे , ये मन । कण -कण पुलकित हो जाए तुम ऐसी उम्मीद जगाना , जन -जन में भरकर निराशा न रोज की तरह ढल जाना , आशाओ के साथ उदय हो खुशियों की किरणे बिखराना, करती आशापूर्ण याचना हाथ जोड़कर आती शाम , रवि तुम्हे संध्या बेला पर करू उम्मीदों भरा सलाम ।