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सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शाख के पत्ते ...

हम ऐसे शाख के पत्ते है  जो देकर छाया औरो को  ख़ुद ही तपते रहते है , दूर दराज़ तक छाया का  कोई अंश नही , फिर भी ख्वाबो को बुनते है  उम्मीदों की इमारत बनाते है , और ज्यो ही ख्यालो से ...

चन्द सवाल है जो चीखते रह गये ...

हमारे दरम्यान के सभी रास्ते यकायक बंद हो गये क्या कहे ,न कहे हम इस सवाल पर अटक गये । हम जानते है ये खूब ,दगा फितरत मे नही तुम्हारे कोशिश तो थी  मिटाने की ,मगर दाग फिर भी रह गये । जब...

दुर्दशा ?

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जीवन की अवधि और दुर्दशा चीटी की भांति होती जा रही है , कब मसल जाये कब कुचल जाये , कब बीच कतार से अलग होकर अपनो से जुदा हो जाये । भयभीत हूँ सहमी हूँ मनुष्य जीवन आखिर अभिश...

बूंद-- बूंद

जिंदगी इतनी आसानी से देती कहाँ हमे कुछ , संघर्षों के बिना है होता हासिल कहाँ हमे कुछ । --------------- गम अज़ीज़ हो गया खुशी को नकार के , उठा कर हार गये हम जब नखरे  बहार के  । *****************

अधूरी आस

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ख्यालो की दौड़ कभी थमती नही कलम को थाम सकू वो फुर्सत नही , जब भी कोशिश हुई पकड़ने की वक़्त छीन ले गया , एक पल को भी रूकने नही दिया , सोचती हूँ इन्द्रधनुषी रंग सभी क्या बादल में ही ...

धीरे --धीरे ...

टूट रहे सारे  रिश्ते कल के धीरे- धीरे जुड़ रहे सारे रिश्ते आज के धीरे - धीरे , समय बदल गया सोच बदल गई मंजिल की सब दिशा बदल गई , हम ढल रहा है अब मै  में धीरे  -धीरे साथ रहने वाले  अब कट ...

बंजारों की तरह ....

बंजारों की तरह अपना ठिकाना हुआ रिश्ता हर शहर से अपना पुराना हुआ, स्वभाव ही है नदियों का बहते रहना मौजो को रुकना कब गवारा हुआ , बेजान से होते है परिंदे बिन परवाज के उड़े बिना उन...