संदेश

2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ख्याल जुदाई का ....

वो मंजर जितना हसीं उतना ही गमगीन होगा , जब हम हाथ छुड़ाके दिल में होकर भी , दूरी नाप रहे होंगे , एक पल नजदीक और एक पल दूर खींचते हुए हमें , अनचाहे राह पर खड़े किये होगा , हम हालात में कैद अपनी मर्जी बांधे होंगे , न चाहते हुए भी एक दूजे को , विदा करते होंगे , डबडबाती आँखों में आंसुओं को सँभालते हुए , हाथ हिलाते - हिलाते अचानक ओझल हो जायेंगे । अपने - अपने रास्ते मुडकर यही ख्याल लिए बढ़ते होंगे , कल मिलेंगे भी कि नहीं ये जुदाई उम्र कैद तो नहीं ।

बाँध ले आस जीने की

जा रही है जिंदगी जी सके तो जी । बढ़कर आगे थाम ले आस जीने की । खुशियों के बहाने ही गम के आंसू पी । जा रही है जिंदगी खुशियों से तू जी । हो सके तो दे के जा सबको कोई ख़ुशी । बाँट ले तू बढ़कर गम के बोझ कही । जाएगा जो बांधकर दिल में नफ़रत यूं ही । जी सकेगा न तू उस जहां में भी । कर ले गमो से तू अब तो दोस्ती । बढ़कर के आगे थाम ले अब ये हाथ भी । जिद्द से हो रिहा तू पायेगा ,यहाँ कुछ नहीं । जा रही है जिंदगी मुस्कुरा कर जी ।

दिल ........

दिल का क्या चाँद पे जाना चाहता है , दिल की क्या कहे आसमान छूना चाहता है , दिल तो है अस्थिर खयालो से भरा , कुछ पाना तो कुछ खोना भी चाहता है , दिल तो दिल है डोल भवर में जाता है , भाग्य - वक़्त के आगे बेबस सा हो जाता है , फूलो सा नाजुक लहरों सा चंचल , बेचारा दिल ये बेबस सा रह जाता है , दिल तो आखिर दिल है उलझन में पड़ जाता है ।

हर कदम संभलकर उठाती है जिंदगी

दर्द में गुजर गई ये जिंदगी अब तो गिला भी नहीं जिंदगी । उम्र भी रही कहाँ , अब शिकायत की बोलते - बोलते अब चुप हो गई जिंदगी । भागते - भागते थक चुकी अब ये जिंदगी जाते - जाते वक़्त को पकड़ रही अब जिंदगी । किस सूरत पर ख्वाहिशों के महल बने दूसरे जहां के इन्तजार मे जहाँ जिंदगी । उम्मीद ने किया इस तरह बेसहारा यहाँ , कि दहलीज पे इसे , नहीं आने देती जिंदगी । वक़्त हुआ आइने के सामने आये हुए अब तो सूरत मिलाने से कतराती है जिंदगी । गुजरे वक़्त से भी , अब नहीं है गुजरती खोने का अहसास दिलाती इसे जिंदगी । भूले से भी अतीत मे अब झांकती नहीं ढलती उम्र का आभास दिलाती जिंदगी । इतने हादसों से गुजर गई है कही , कि हल्की आहट पे ही सहम जाती जिंदगी । फरेब से सामना हुआ है , इसका इतना हर सच पर प्रश्न चिन्ह ...

उलझन ....

कार्य जब हमारे वश का नही , पड़ती है जरूरत साहस की , चाह कर भी न उठे जब कदम किसी संशय में , उलझन भरा वह पल , फिर किसी कसौटी से कम नही , घिर जाये निर्णायक यदि दुविधा पूर्ण चिंतन में , तो देती परिस्थति गवाही वहां जीवन - संघर्ष की ।

मन

अथाह सागर में उफनता अशांत लहरों सा ये मन मेरा । जीवन की इन उलझनों को सुलझाता हुआ ये मन मेरा । इस उधेड़ - बुन के जाल में फंस कर रह गया ये मन मेरा । ------------------------------------- नींव की पुनरावृति कर खंडहर क्यो बुलंद करते हो ? जर्जर हो गये जो ख्याल उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे । अतीत को वर्तमान सा न बनाओ टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे ।

फिर वही राह

एक नई रौशनी के साथ हर सुबह जागती है , दिल में , फिर कोई उम्मीद अपनी जगह बनाती है , शायद, दिन ढलते - ढलते यकीं दस्तक दे जाये , इन्ही खयालो की दास्ताँ हर लम्हा बुनती है , आहिस्ता - आहिस्ता रात के ढलने के साथ , एक बार फिर टूटती है । भाग्य की रेखा के साथ नया आसरा ढूंढती हुई , लकीरों से समझौता कर फिर वही राह पकड़ लेती है ।

मुमकिन .....

मेरी जिंदगी में क्या हो तुम , ये शब्दों में नही बाँधा जा सकता । कागज़ पर नही उतारा जा सकता । ये शिरी - फरहाद या लैला - मजनूँ के किस्से नही , जिसे सरेआम बयां कर दिया , उन्हें तो रास्ते न ही मिले । यहाँ तो रास्ते भी है मंजिल भी दिलो के गहरे इरादे भी , तो देर किस बात की चलो छू ले मंजिल , रास्ते तो यहाँ है सब लगभग मुमकिन ही ।

विरक्ति

थक गई , हर वक्त रिश्तें को बचाते - बचाते और अनेको बार हो गई घायल , इसकी हिफाजत में लड़ते - लड़ते । जीत पाने की तमन्ना हर मोड़ पर हराती गई , चक्की में घूमा - घूमा हालात को पीसती गई , विरक्त हुआ मन आ सब छोड़ चले , हर किसी को यहाँ अपने हाल पे रहने दे ।

व्यक्तिवाद

कभी - कभी अतीत होता है इतना भयावह कि दुःख - दर्द के मेल का हरेक वाक्या दिल दहला जाता है । पलट कर देखो तो आंसुओ का मंजर ही नज़र आता है । ' मैं ' का स्थान शून्य होता मर्यादा ओ के बोझ तले , ' हम ' का अस्तित्व जटिल हुआ आंसुओ और आहो के खेल में । ' मैं ' जहां ' हम ' तक नही बन पाता है , रिश्तों की बुनियाद को भी यही व्यक्तिवाद हिला देता है ।

पाक सा रिश्ता

है , तुम्हारे यकीं से मेरा विश्वास जुड़ा तुम्हारी अदा है सबसे जुदा , चाहूँ भी कुछ छिपाना तुमसे छिपाना मुश्किल है जरा , न चाहने से भी हमारे कुछ होगा भी कहाँ , इस पाक रिश्तें का साथ दे रहा हो जब ख़ुद खुदा । ये ख्याल लिए भीनी सी हँसी बिखेर देती है , जुबां ।

जीवन संगीत

चित्र
आज के दिन ही हम एक हुए थे....कितना लम्बा सफ़र तय कर लिया, याद ही नहीं। लगता है कल की ही तो बात थी........ अहसास कभी उम्र नहीं पाते , कितनी सच्ची बात है ये। जीवन की ऊंची-नीची डगर पर चलते हुए कब एक अजनबी इतना अपना हो जाता है पता ही नहीं चलता.... ..... सुख-दुख के साझेदार हुए, जीवनभर के साथ हुए। कानों में संगम के गीत प्रिये, तुम तो मेरे मीत प्रिये। आंसुओं से भीगे हुए, पलकों पर कुछ अद्भुत सपने, हमने जो आँखों में समां लिए, तुम तो मेरे मीत प्रिये। उजियाले का अधिकार लिए, मिटा तम के आकर्षण प्रिये। ढलते सूरज को दे आवाज़, हर हार को निरस्त करके, मुश्किलों में मुस्कान लिए, तुम तो मेरे मीत प्रिये। इस जीवन के गीतों के स्वर नहीं आसान प्रिये, जहां मिले स्वर हमारा मधुर वही संगीत प्रिये। चलते रहे अगर साथ यूं ही, हर मुश्किल है आसान प्रिये, तुम तो मेरे मीत प्रिये, जीवन का संगीत प्रिये.

कुछ बातें सवाल लिए

औपचारिकता के चक्र व्यूह में अगर हर रिश्तें निभाएंगे । अभिमन्यु की तरह हम भी उलझ कर फिर रह जायेंगे । --------------------------------- दूर तक सागर सा फैलाव लिए क्या कोई मुस्कान बिखरी होगी ? जिंदगी तेरे युग की व्यस्तता में इस विस्तार की कमी तो न होगी ? ----------------------------------------------- उपदेश ऊँचे - ऊँचे बातें बड़ी - बड़ी न्याय एवं परोपकार के नाम पर , कुछ नही , विरोधाभास का उदाहरण बेहतर इससे नही कही ।

अदालत ....

कठघरे सा हर घर , अदालत तो नही , मगर होती पेशी , कानूनी कार्यवाही तो नही , दाव- पेंच कम नही हर बात की गवाही भी , सबूतों के संग शायद , कही रह गई कमी पारखी नज़र की , मिसाल कायम कर न सकी तभी , सच्चाई की । यदि आलम रहा यही मांगेंगे अपने होने का सबूत आईने भी ।

कलम की ज़िद

करने लगी कलम आज शोर शब्दों को रही तोड़-मरोड़, कुछ तो हंगामा करो यार, अच्छा नहीं यूँ बैठे चुपचाप। कागज़ पे तांडव हो आज, लगे विचारों के साथ दौड़, मच जाए आपस में होड़। मचला है, ख्यालों में जोश , उसे नहीं कुछ और है होश। ले के नई उमंगों का दौर, करने लगी कलम आज शोर।

नासूर

कुछ कांटे कुछ बातें हर पल खटकते है , दिल को सोचने पर जो मजबूर करते है । अगर समय पर इन्हे नही निकाला जाए , तो जख्म इसके फिर 'न ासूर ' हो जाते है ।
तनहा खामोश है , अपनी महफ़िल में ये खूबसूरत शमा , ढल जायेगी अश्को में लपेटे जिस्म किसी वक्त गमगीन शमा ------------------------------------- जिंदगी को जिंदगी से है इतना प्रेम सोचकर सिर्फ़ वो कजा से घबराती है , यही वज़ह लिए , परेशानियों में मौत उसका साथ निभाती है ।

मिटना -बनना

बहुत कुछ बिसार दिया बहुत कुछ याद रक्खा , सहेजते - सहेजते क्या कुछ न गवा दिया , जो वक्त पकड़ सका वो संभल गया , जो मन न सह सका वो पिघल गया , रेत की तरह आहिस्ते - आहिस्ते आज फिसल गया , और याद बनकर अतीत ठहर गया ।