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ये चाँद उतर कर जमीं पर तो आ..

चाँद ऐ चाँद  उतर कर कभी  जमीं पर तो आ  तंग गलियों के बंद घरों की गंदी बस्तियों में आकर तू फेरे तो लगा  देख आँखों में पलती हुई बेबसी  बंद गलियों में दम तोड़ती जिंदगी जीने मरने की  उम्मीद लिये सिसकती जिंदगी आँखों में कटती  चुभती रातें  होंठो पे अटकी अनकही बातें  देख दिल के गहरे दाग यहाँ  सुन सबके अपने हाल यहाँ  तू भी तो आँसुओं मे नहा  तू भी तो दुख में  मुस्कुरा अरे तू  छुप गया कहाँ चाँदनी से निकल सामने तो आ कई रिश्ते निभाये है तूने हमसे  अब मसीहा बनकर भी  तू हमें दिखा  ऐ चाँद उतर कर जमीं पर तो आ.. .।

ईसा मसीह

ईसा जब जब तुम्हे  यू सूली पर  लटका हुआ देखती हूँ  तब तब तुम्हारे बारे में  सोचने लगती हूँ  और तुमसे ये  पूछ ही बैठती हूँ  ईसा तुम  अच्छाई को ठुकते  देख रहे थे ऊपर से चेहरे पर  हँसी लिए हुए  मुस्कुरा भी रहे थे  और सुनते हैं  उन जल्लादो पर भी तरस खा रहे थे तुम जो तुमको सूली पर बड़ी बेरहमी से चढ़ा रहे थे, जहाँ बातों से मन  छलनी हो  जाता हैं वहाँ कील से  ठोके जाने पर रक्त के बहते रहने पर पीड़ा तुम्हारी असहनीय तो  हो ही रही होगी फिर भी तुम  सारी वेदनाये  व्यथा, तकलीफ  आसानी से सहते गये ,  इन हालातों में भी अपने दर्द को महसूस करने  और अपने  ऊपर तरस  खाने की बजाय  उन जल्लादो पर  तरस खा रहे थे  जो जान बूझकर तुम्हे  कष्ट पहुंचा रहे थे तुम्हारी अच्छाई का तिरस्कार खून कर रहे थे,  सचमुच तुम महान थे  जो कातिल को  बुरा भला कहने और उन्हे सजा सुनाने की बजाय  उनके लिए दुआ मांग रहे थे,  जो सब सहकर भी हँसते हुए  सूली पर लटक जाये  वो ...