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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संगत ........

स्वाती की बूँद का निश्छल निर्मल रूप , पर जिस संगत में समा गई ढल गई उसी अनुरूप । केले की अंजलि में रही वही निर्मल बूँद , अंक में बैठी सीप के किया धारण मोती का रूप , और गई ज्...

मानवता का स्वप्न

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मानवता का स्वप्न कैसा दुर्भाग्य ?  तेरा भाग्य सर्वोदय की कल्पना , बुनता हुआ विचार, स्वर्णिम कल्पना को आकार देता , खंडित करता ,  फिर उधेड़ देता लोगों का विश्व...

शिल्प-जतन

नीव उठाते वक़्त ही कुछ पत्थर थे कम , तभी हिलने लगा निर्मित स्वप्न निकेतन । उभर उठी दरारे भी व बिखर गये कण -कण , लगी कांपने खिड़की सुनकर भू -कंपन , दरवाजे भी...

कुछ बूंदे कुछ फुहार

______________________________ कुछ बूंदे कुछ फुआर तफसीर जब बेबसी का हुआ  त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया , आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ  पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।  _______________________________ जिसके चेहरे प...

ख्वाहिशों को रास्ता दूँ

आज सोचा चलो अपनी ख्वाहिशो को रास्ता दूँ , राहो से पत्थर हटाकर उसे अपनी मंजिल छूने दूँ , मगर कुछ ही दूर पर सामने पर्वत खड़ा था अपनी जिद्द लिए अड़ा था , उसका दिल कहाँ पिघलता वो मुझ जैसा इंसान  नही था  , स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर  खिलखिलाकर हँस पड़े  , हो बेजान , अहसास क्या समझोगे हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ? आज न सही कल पार कर जायेंगे उड़ान भर कर आगे नि कल  जायेंगे ।

खामोशी

खड़ी खड़ी मैं देख रही मीलों लम्बी खामोशी । नहीं रही अब इस शहर में पहले जैसी  हलचल सी खामोशी का अफसाना ,क्यों ये वक़्त लगा है लिखने जख्मों से हरा भरा ,क्यों ये शहर लगा है दिखने देक...

पत्थरों का स्रोत

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पत्थरों का ये स्रोत .. क्या लिखूं क्या कहूं ? असमंजस में हूँ , सिर्फ मौन होकर निहार रही बड़े गौर से पत्थर के  छोटे -छोटे टुकड़े , जो तुमने बिखेर दिये है मेरे चारो तरफ , और सोच रही हूँ कैसे बीनूँ इनको ? एक लम्बा पथ तुम्हे बुहार कर दिया था ,मैंने और तुमने उसे जाम कर दिया कंकड़ पत्थर से । पर यहाँ सहनशीलता है कर्मठता है और है इन्तजार करने की शक्ति , ठीक है , तुम बिखेरो हम हटाये , आखिर कभी तो हार जाओगे , और बिखरे पत्थर सहेजने आओगे , और खत्म होगा पत्थरों का ये स्रोत । ""''"""""""""""""""""""" मौन होकर निहार रही हूँ  तेरे बिखेरे पत्थरों को ... मैं तो फिर भी चल लुंगी  कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में  पुकार लेन...

चाँद सिसकता रहा

चाँद सिसकता रहा शमा जलती रही , खामोशी को तोड़ता हुआ दर्द कराहता रहा , और फ़साना उंगुलियां कलम से दोहराती रही , आँखों के अश्क में शब्द सभी नहाते रहे , रात के...

वक्त की शरारत

जाते हुए वक़्त को रोककर मैंने पूछा जो छोड़ कर जाते हो उसकी वजह भी देते जाओ वो बहुत ही जल्दी में था आदतन टालकर कल पर छोड़ कर ' मिलियन डॉलर स्माइल ' देते हुए रफूचक्कर हो गया , और मुझे ...

सहेली के सालगिरह पर ..........

मैं तुम्हारी वही बचपन वाली सहेली हूँ कभी कही कभी अनकही कभी सुलझी कभी अनसुलझी सी पहेली हूँ पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ , वही अधिकार वही प्यार लिए वही विश्वास वही...

बाजी ......

पहली रात की बिल्ली मारना किसे चाहिए मार कौन रहा था ? सारे उम्र की बाजी एक पल में वो लगा रहा था पलड़े का भार कही दिशा न बदल दे इस डर से सभी बाँटे अपने पलड़े पर जल्दी जल्दी  चढ़ा रहा थ...

मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यो ..........

जीवन की अवधि एवं दुर्दशा चींटी की भांति होती जा रही है कब मसल जाये कब कुचल जाये कब बीच कतार से अलग होकर अपनो से जुदा हो जाये , भयभीत हूँ सहमी हूँ चिंतित हूँ मनु ष्य जीवन आखिर अ...