पत्थरों का ये स्रोत .. क्या लिखूं क्या कहूं ? असमंजस में हूँ , सिर्फ मौन होकर निहार रही बड़े गौर से पत्थर के छोटे -छोटे टुकड़े , जो तुमने बिखेर दिये है मेरे चारो तरफ , और सोच रही हूँ कैसे बीनूँ इनको ? एक लम्बा पथ तुम्हे बुहार कर दिया था ,मैंने और तुमने उसे जाम कर दिया कंकड़ पत्थर से । पर यहाँ सहनशीलता है कर्मठता है और है इन्तजार करने की शक्ति , ठीक है , तुम बिखेरो हम हटाये , आखिर कभी तो हार जाओगे , और बिखरे पत्थर सहेजने आओगे , और खत्म होगा पत्थरों का ये स्रोत । ""''"""""""""""""""""""" मौन होकर निहार रही हूँ तेरे बिखेरे पत्थरों को ... मैं तो फिर भी चल लुंगी कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में पुकार लेन...