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जिन्दगी महक जाती है जब उम्मीद खिलखिलाती है , वर्ना सूरते एक मुस्कान देखने के लिये तरस जाती . .................. जिन्दगी से जितना लड़ोगे जीवन मे उतना आगे बढ़ोगे . जिन्दगी मे जितना सहोगे समझ से उतना आगे रहोगे .
रहीम जी का एक दोहा है - जो रहीम उत्तम प्रकृति का करत सकत कुसंग-- चंदन बिष व्यापत नही लिपटे रहे भुजंग . बात तो सही है ,जो इस दोहे मे कही गई है ,पर उनके लिये जिनमे धैर्य अपार मात्रा मे व्याप्त हो ,क्योकि ये बात आज के समय मे जरा मुश्किल सी मालूम होती है , चंदन एक पेड़ है जो मौन रहता है साथ मे सजीव होते हुये भी निर्जीव के समान है ,इसके तन-मन के लिये कोई भी हरकत या बात बेअसर है ,इसलिये चंदन पर बिष चढ़ने या लिपटे रहने से कुछ नही होता ,परन्तु मनुष्य चंदन की तरह होकर भी चंदन नही रह सकता ,क्योकि वह एक सजीव ,संवेदनशील प्राणी है ,उसे गलत बाते विचलित कर देती है और वह परेशानियो मे अपना संतुलन एवं धैर्य खोने लगता है ,मन को समझाना -संभालना इतना आसान नही होता तभी मनुष्य दिशा भटक जाता है ,वो पूर्ण रूप से चंदन की तरह स्थिरता और सहनशीलता बनाये नही रह सकता ,विरोध करना उसकी प्रकृति है ,अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना आदत .इसलिये उत्तम प्रकृति वाले ही कुसंग के चपेट मे अधिक आ रहे है .
औरत हर कदम पर आजमाईश की सूरत होती है ढल जाये जो हर हालात मे ऐसी ये मूरत होती है .

दिल ........

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दिल सुनता रहा दिल सहता रहा , सब्र का सिलसिला बस यूही चलता रहा . _------------------------ खामोशी मे कई बातो का आगाज होता है टूटने पर ही इस बात का अहसास होता है . _--------------------------------------------

बचपन की तस्वीरे

बीते दिनो की हर बात निराली लगती है बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है . पहली बारिश की बूंदो मे मिलकर खूब नहाते थे , ढेरो ओले के टुकड़े को बिन बिन कर ले आते थे . इन बातो मे शैतानी जरूर झलकती है  बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती हैै . सावन के आते ही पेड़ो पर झूले पड़ जाते थे , बारिश के  पानी मे बच्चे कागज की नाव बहाते थे , बिना सवारी  की वो नाव भी अच्छी लगती है  बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है । पल में रूठना पल में मान  जाना  बात बात में मुँह का फुल जाना , जिद्द में अपनी बात मनवाना  हक से सारा सामान जुटाना , खट्टी मीठी बातों की हर याद प्यारी लगती है  बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।। कच्ची मिट्टी की काया थी  मन मे लोभ न माया थी , स्नेह की बहती धारा थी  आशीषों की सर पर छाया थी , चिंता रहित बहुत ही मासूम सी जिंदगी लगती है  बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।

मन के मोती

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हर फिक्र से आजाद हम होने लगे है , सोचने सबके लिए अब कम लगे है . ,,,,,,,,............ शिकायतो मे ही हमेशा जिन्दगी बसर करना अच्छा नही , लौटकर नही आता यहॉ फिर जो गुजर जाता हैै वक्त कभी .

सालगिरह पर

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आज का दिन ही ऐसा है जो हमे लिखने को मजबूर कर रहा है , क्योकि हमारी जिन्दगी से ये एक बर्ष को दूर कर रहा है . जो आती है चीज यहॉ वो जाती भी है इसे बयां हमारा  दस्तूर कर रहा है .

युग परिवर्तन

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न तुलसी होंगे, न राम न अयोध्या नगरी जैसी शान . न धरती से निकलेगी सीता , न होगा राजा जनक का धाम . फिर नारी कैसे बन जाये दूसरी सीता यहां पर , कैसे वो सब सहे जो संभव नही यहां पर . अपने अपने युग के अनुसार ही जीवन की कहानी बनती है , युग परिवर्तन के साथ नारी भी यहॉ बदलती है .