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बूंदे ओस की

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ओस की एक बूँद नन्ही सी चमकती हुई अस्थाई क्षणिक रात भर की मेहमान ___ जो सूरज के आने की प्रतीक्षा कतई नही करती , चाँद से रूकने की जिद्द करती है , क्योंकि दूधिया रात मे उसका व...

शाख के पत्ते ...

हम ऐसे शाख के पत्ते है  जो देकर छाया औरो को  ख़ुद ही तपते रहते है , दूर दराज़ तक छाया का  कोई अंश नही , फिर भी ख्वाबो को बुनते है  उम्मीदों की इमारत बनाते है , और ज्यो ही ख्यालो से ...

चन्द सवाल है जो चीखते रह गये ...

हमारे दरम्यान के सभी रास्ते यकायक बंद हो गये क्या कहे ,न कहे हम इस सवाल पर अटक गये । हम जानते है ये खूब ,दगा फितरत मे नही तुम्हारे कोशिश तो थी  मिटाने की ,मगर दाग फिर भी रह गये । जब...

दुर्दशा ?

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जीवन की अवधि और दुर्दशा चीटी की भांति होती जा रही है , कब मसल जाये कब कुचल जाये , कब बीच कतार से अलग होकर अपनो से जुदा हो जाये । भयभीत हूँ सहमी हूँ मनुष्य जीवन आखिर अभिश...

बूंद-- बूंद

जिंदगी इतनी आसानी से देती कहाँ हमे कुछ , संघर्षों के बिना है होता हासिल कहाँ हमे कुछ । --------------- गम अज़ीज़ हो गया खुशी को नकार के , उठा कर हार गये हम जब नखरे  बहार के  । *****************

अधूरी आस

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ख्यालो की दौड़ कभी थमती नही कलम को थाम सकू वो फुर्सत नही , जब भी कोशिश हुई पकड़ने की वक़्त छीन ले गया , एक पल को भी रूकने नही दिया , सोचती हूँ इन्द्रधनुषी रंग सभी क्या बादल में ही ...

धीरे --धीरे ...

टूट रहे सारे  रिश्ते कल के धीरे- धीरे जुड़ रहे सारे रिश्ते आज के धीरे - धीरे , समय बदल गया सोच बदल गई मंजिल की सब दिशा बदल गई , हम ढल रहा है अब मै  में धीरे  -धीरे साथ रहने वाले  अब कट ...

बंजारों की तरह ....

बंजारों की तरह अपना ठिकाना हुआ रिश्ता हर शहर से अपना पुराना हुआ, स्वभाव ही है नदियों का बहते रहना मौजो को रुकना कब गवारा हुआ , बेजान से होते है परिंदे बिन परवाज के उड़े बिना उन...

दर्द

आहिस्ता - आहिस्ता दर्द घर में पैर जमाता रहा _ और कुछ हल्की कुछ गहरी छाप अपनी शक्ल की छोड़ता रहा । हम इसकी आमद से घबराते रहे , ये अपना राज फैलाता रहा ।

क्या.............?

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  क्या .......? क्या  कहा  जाये  क्या  सुना  जाये  इस  क्या  से  आगे   यहाँ  कैसे  बढ़ा  जाये समझ  आता  नहीं  , क्योंकि  ये  दुनिया  अब   पहले  जैसे  सीधी  रही  नहीं  , तभी  आसान  बात  भी  मुश्किल  नज़र  आती  है  , किसी  से  कहे  कुछ  उसे  समझ  कुछ  और  आती  है  ।  शायद  इसलिए  ज़िन्दगी  अब , लम्हों  में  बिखर  जाती  है  ।  जिंदगी यूँ  ही कतरा -कतरा  गुजारी जाती है । - ज़िन्दगी यूँ ही कतरा कतरा गुजार - ज़िन्दगी यूँ
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होकर भी साथ नहीं ख्वाब  वही   ख्वाहिश  वही  अल्फाज  वही   ज़ुबां  वही  , फिर  रास्ते  कैसे   जुदा  है  सफ़र  के  , कदम  साथ  अपने  दे  रहे  क्यों  नहीं  । कही  तो  कुछ   खलिश  है ...
नामुमकिन को मुमकिन करना सबके वश का काम नहीं, हुई सफलता उसी को हासिल हार भी जिसके लिए हार नही । .................... अच्छा हुआ तो प्यार में बुरा हुआ तो प्यार में, फिर भी प्यार ,प्यार ही रहा चाहे ज...

पतवार

शीर्षक   ---पतवार ................. उम्र गुजर जाती है सबकी लिए एक ही बात , सबको देते जाते है हम आँचल भर सौगात , फिर भी खाली होता है क्यों अपने मे आज ? रिक्त रहा जीवन का पन्ना जाने क्या है राज  ? बात ...

मंजर

जरा ठहर कर देख तो लेते, मंज़र क्या है आगे का ! बहुत जरूरी रहे संभलना , किसको पता इरादों का ! 
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गुमां नहीं रहा जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसो...

सन्नाटा....

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चीर कर सन्नाटा श्मशान का सवाल उठाया मैंने , होते हो आबाद हर रोज कितनी जानो से यहाँ फिर क्यों इतनी ख़ामोशी बिखरी है क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ , हर एक लाश के आने पर तुम जश्न मना...

आदमी.....

आदमी जिं दगी के जंगल में अपना ही करता शिकार है , फैलाता है औरो के लिए जाल और फसता खुद हर बार है । .......................

युग परिवर्तन

युग परिवर्तन न तुलसी होंगे, न राम न अयोध्या नगरी जैसी शान . न धरती से निकलेगी सीता , न होगा राजा जनक का धाम . फिर नारी कैसे बन जाये दूसरी सीता यहां पर , कैसे वो सब सहे जो संभव नही यह...

हम.......

हम ........ मै को अकेले रहना था  हम को साथ चलना था एक को खुद के लिए जीना था  एक को सबके लिए जीना था ,  इसलिए सबकुछ होते हुए भी   मै यहाँ कंगाल रहा  कुछ नही होते हुए भी  हम मालामाल रहा ।

आखिर ऐसा हुआ क्यों ?

आखिर ऐसा हुआ क्यो ? सही ही गलत का है हकदार क्यों ? बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यों ? गीता और कुरान का मान घटा क्यों ? सच जानते हुए भी झूठ चला क्यों ? यहाँ धर्म और ईमान डगमगाया क्यों ? य...

लेन देन

जीवन की रीत यही है जो देगा उसे ही मिलेगा बीज बो और फूल खिलेगा वृक्ष रोपो तो फल मिलेगा , लेन-देन की शृंखला ही जीवन को परिपूर्ण करेगी , सुख -वैभव का आनंद देकर जीवन मे उल्लास भरेगी ...

अपनी राह .....

ये रास्ते है अदब के कश्ती मोड़ लो , माझी किसी और साहिल पे चलो । हम है नही खुदा न है खास ही , राहे - तलब अपनी कुछ है और ही । नाराजगी का यहाँ सामान नही बनना , ...
छोटी सी दो रचनाये --------------------------- महंगाई से अधिक भारी पड़ी हमको हमारी ईमानदारी , महंगाई को तो संभाल लिया हमने इच्छाओ से समझौता कर , मगर ईमानदारी को संभाल नही पाये किसी समझौते पर ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,...

हमारे प्यारे त्यौहार

किसी भी त्यौहार की गरिमा को बनाये रखना जरूरी है ,क्योंकि ये त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति को दर्शाते है ,ये हमें अपनी मातृभूमि से जोड़कर रखते है ,आपसी बैर को मिटा कर दोस्...

न्याय का हिसाब

जब जब मुझे छोटा बनाया गया मेरे तजुर्बे के कद को बढ़ाया गया जब जब हँसकर दर्द सहा तब तब और आजमाया गया , समझने के वक्त समझाया गया क्या से क्या यहां बनाया गया , न्याय का भी अजीब हिसाब...

खोज करती हूं उसी आधार की

फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना गुण न वह इस बांसुरी की तान में , जो चकित करके कंपा डाले हृदय वह कला पायी न मैंने गान में । जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह ओस के आंसू बहा के फूल में । ढ...

मिट्टी की आशा ....

सब चीजों को हमने बस ,पाने का मन बनाया , जब हाथ नही वो आया तो मन दुख से भर आया । जीतकर दुनिया भी सिकंदर कुछ नही यहां भोग पाया , हुकूमत की लालसा में उसने बस लाशों का ढेर लगाया । बहुत ज...

आदमी

शीर्षक  --आदमी मुनाफे के लिए आदमी  व्यापार बदलता है, खुशियों के लिए आदमी व्यवहार बदलता है , ज़िन्दगी के लिए आदमी  रफ्तार बदलता है , देश के लिये आदमी  सरकार बदलता है , तरक्की के ल...

तुम बस अपनी ही कहते हो

तुम  बस अपनी ही कहते हो औरो की कब सुनते हो ? औरो की जब सुनोगे बात तभी तो समझोगे । न्याय एक पक्ष का नही दोनों पक्षों का होता है , उसे तो तानाशाही कहते है जहाँ कोई अपनी मनमानी करता ...

मै दुर्गा बनकर आऊँगी ......

तुम्हारे सभी फैसलों पर मै  मोहर लगाती जा रही हूं , नारी हूँ ,इसलिए सभी नारी धर्म निभा रही हूं , ये अलग बात है सोचती हूँ मै ईसा की तरह , तभी नादान समझकर माफ करती जा रही हूँ , पर इस भरम...

मै औरत ही बनकर रह गई ____

जिसके  लिये भी अच्छा सोचा उसी के लिए बुरी बन गई , छोड़ दे सारी दुनिया की फिक्र मन ने कहा ,पर आदत वही रह गई । हंगामा करना भाता न था तभी चुप रहकर सब सह गई , औरों को ही हमेशा देती रही मैं ...

बचपन की तस्वीरे

काव्यांजलि बीते दिनो की हर बात निराली लगती है बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है . पहली बारिश की बूंदो मे मिलकर खूब नहाते थे , ढेरो ओले के टुकड़ों को बीन बीन कर लाते थे . इन बातो मे ...
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