है कठिन जमाना लिए कठिन दर्द अन्याय की दीवारों में , जख्मो की बेड़िया पड़ी हुई है परवशता के विचारो में । रोते -रोते शमा के अश्क बदल गये अब सिसकियो में , हर दर्द उठाती है मुस्कान इस बेदर्द जमाने में । छुपाये नही छिपते है आंसू हकीकत के इन आँखों में , एक जीत नजर आती है जिंदगी जीवन के इन हारो में । रात को रौशन कर देगी कभी चाँदनी अपने उजालो में ।
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अक्तूबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
सब का मालिक एक है
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ईश्वर हो या अल्लाह वो कहता बस यही , हमे न चाहिए कोई जमीं और न इमारत बड़ी -बड़ी । मैं तो हूँ कण -कण में जीवन के हर धड़कन में , याद करोगे जिस जगह मिलूंगा तुम्हे मैं वही । नाम हमे चाहे जो दे दो इबादत तो है एक ही , बाँट रहे हो क्यों हमको हम तो है सबके ही । मैं तो नेक इरादों में मानवता की राहो में , प्रेम के निर्मल भावो में इंसानियत से बढ़कर नही होता धर्म कोई । धर्म सभी होते है सच्चे अहसास सभी होते एक से , वही इनायत बरसेगी फर्क जहां न होगा कोई । हमने तो नही सिखाया तुम्हे करना भेद कभी , न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम है केवल यहाँ इंसान सभी । ......................................................... इस रचना को फैसले के पहले ही डालना था ,इसे मैं भोपाल में लिखी रही जब वहां गयी थी ,उस समय गणेश चतुर्थी रही मगर लौटने के बाद सोचते -सोचते समय निकल गया फिर संकोच में नही डाल सकी ,मगर कल अपने मित्र के यहाँ जाकर जब इसे पढायी तो उसने कहा तुरंत डाल दो ,और आज डाल पा...