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अप्रैल, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आभार

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ब्लोगिंग का एक साल कल भी , कभी कल हो जाएगा अपने कदमो के निशां छोड़ जाएगा । एक अद्भुत और अनोखी दुनिया , जो मेरी कल्पना से बहुत परे रही , जो एक सौगात स्वरुप मुझे मिली । इस जगत से जोड़ने का श्रेय मेरी परम मित्र वंदना अवस्थी दुबे को जाता , जिसने स्नेह एवं अधिकार के साथ इस जहां में मेरी जगह बनाई , जहाँ मुझे अच्छे - अच्छे मित्र मिले , तथा उनके बीच मेरी पहचान भी कायम हुई । इस खुशबू भरे गुलिस्ता में जीवन महक उठा । इस जादू भरे पिटारे को जितनी बार खोली , उतनी दफे ही कुछ नया कुछ अनमोल खज़ाना पाया , जो इस जीवन को सार्थक करता रहा , इसका हौसला बढ़ाता रहा । कुछ लोग हमेशा मेरे हित में अपनी सलाह देते रहे , इस अपने पन से मुझे बेहद ख़ुशी होती रही , कुछ ब्लोगर बन्धु मेरी तबियत की फ़िक्र लिए बराबर हाल चाल पूछते रहे , आखिर यहाँ कोई ना उम्मीद कैसे हो सकता है जहाँ अपनत्व व स्नेह का दरिया है । कुछ साथी बराबर साथ बने रहे उनकी मैं आभारी ...

आशा -किरण

फिर सुबह होगी , फिर प्रकाश फैलेगा , फिर कोई नए ख्वाब का दिन सुनहरा होगा । फिर पलकों पे सपने सजेंगे , उन सपनो में अरमान पलेंगे , उम्मीदों के दामन थामे , सारी रात जगेंगे । मन न कर तू छोटा ख़ुद से कहते रहेंगे , स्वप्न कहाँ होते है पूरे पर तेरे पूरे होंगे । आशाओ को थाम जकड़ के सारी उम्र रटेंगे , हम भी अन्तिम साँसों तक , अपने ख्वाब बुनेंगे । मिथ्या आसो से बंधकर सपनो से वादे होंगे , अनजाने में ही सही कभी उम्मीद तो पूरे होंगे । पंखहीन होकर भी हम आशाओ के उड़ान भरेंगे , कुछ ख्वाब हमारे ऐसे ही ठहर कर पूरे होंगे । निराश न कर तू मन कुछ ऐसे वक्त भी होंगे । ज़िन्दगी इतनी आसानी से देती कहाँ सभी कुछ , संघर्षो के बिना है होता हासिल कहाँ हमें कुछ । भाग्य रेखाओ को झुठलाते आगे बढ़ते जायेंगे , रेखाओ के खेल है बनते -मिटते रहते है , हर नए दिन जो आते है , उम्मीद लिए ढलते है । वादे तो ख्वाबो में पलते है , ये सिलसिले यूही चलेंगे । ........................................................

अस्तित्व .....

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धरती की मैं हूँ धूल गगन को कैसे चूम पाऊं , उड़ाये जो हमें आंधियाँ तो भी आकाश न छू पाऊं , मैं जुड़ी हुई जमीन से किस तरह यह नाता तोडू , अम्बर की चाहत में बतला किस तरह यह दामन छोड़ू ।

आप ही है ......

बदला हुआ सुर देखकर हैरान इस कदर न होइये , अपने कैसे हो जाते पराये अब और साबित मत कीजिये । दिल की नज़रो से नही दिमाग की नजरो से देखिये । यहाँ जो दिखता है वो बिकता है गूंगे को अब कोई , साधू नही समझता है । बात अपनी मनवाना , है जो जनाब घूमा फिरा के नही , सीधे - सीधे बोलिये । अब ज़माना किसी को दोष देने का नही आप ही है जगन्नाथ , बस यही समझ लीजिये ।

कुछ बाते ....

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सारी रात गुजर गई लेकर तेरी याद , नीँद बेवफा हो गई देकर तेरा साथ । >>>>>>>>>>>>>> जिंदगी यू ही गुजरती है दर्द के पनाहों में , क्षण - क्षण रह गुजर करते है पले कांटो भरी राहो में । >>>>>>>>>>>>>>>>> सुख - दुख के मधुर साजो पर एक गीत लब्ज गुनगुनाती है , एक नई रचना साथ लिए कागज़ पे कलम ठहर जाती है । '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' उदासी आँख से हटाओ हकीक़त में तुम आओ , बड़ी बेवफा है ये दुनिया गमे - राह में भी मुस्कुराओ । , पानी के बहने से पत्थर घिस जाते है जिंदगानी छूट जाने से लोग भूल ज...