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नवंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवन संगीत

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आज के दिन ही हम एक हुए थे....कितना लम्बा सफ़र तय कर लिया, याद ही नहीं। लगता है कल की ही तो बात थी........ अहसास कभी उम्र नहीं पाते , कितनी सच्ची बात है ये। जीवन की ऊंची-नीची डगर पर चलते हुए कब एक अजनबी इतना अपना हो जाता है पता ही नहीं चलता.... ..... सुख-दुख के साझेदार हुए, जीवनभर के साथ हुए। कानों में संगम के गीत प्रिये, तुम तो मेरे मीत प्रिये। आंसुओं से भीगे हुए, पलकों पर कुछ अद्भुत सपने, हमने जो आँखों में समां लिए, तुम तो मेरे मीत प्रिये। उजियाले का अधिकार लिए, मिटा तम के आकर्षण प्रिये। ढलते सूरज को दे आवाज़, हर हार को निरस्त करके, मुश्किलों में मुस्कान लिए, तुम तो मेरे मीत प्रिये। इस जीवन के गीतों के स्वर नहीं आसान प्रिये, जहां मिले स्वर हमारा मधुर वही संगीत प्रिये। चलते रहे अगर साथ यूं ही, हर मुश्किल है आसान प्रिये, तुम तो मेरे मीत प्रिये, जीवन का संगीत प्रिये.

कुछ बातें सवाल लिए

औपचारिकता के चक्र व्यूह में अगर हर रिश्तें निभाएंगे । अभिमन्यु की तरह हम भी उलझ कर फिर रह जायेंगे । --------------------------------- दूर तक सागर सा फैलाव लिए क्या कोई मुस्कान बिखरी होगी ? जिंदगी तेरे युग की व्यस्तता में इस विस्तार की कमी तो न होगी ? ----------------------------------------------- उपदेश ऊँचे - ऊँचे बातें बड़ी - बड़ी न्याय एवं परोपकार के नाम पर , कुछ नही , विरोधाभास का उदाहरण बेहतर इससे नही कही ।

अदालत ....

कठघरे सा हर घर , अदालत तो नही , मगर होती पेशी , कानूनी कार्यवाही तो नही , दाव- पेंच कम नही हर बात की गवाही भी , सबूतों के संग शायद , कही रह गई कमी पारखी नज़र की , मिसाल कायम कर न सकी तभी , सच्चाई की । यदि आलम रहा यही मांगेंगे अपने होने का सबूत आईने भी ।

कलम की ज़िद

करने लगी कलम आज शोर शब्दों को रही तोड़-मरोड़, कुछ तो हंगामा करो यार, अच्छा नहीं यूँ बैठे चुपचाप। कागज़ पे तांडव हो आज, लगे विचारों के साथ दौड़, मच जाए आपस में होड़। मचला है, ख्यालों में जोश , उसे नहीं कुछ और है होश। ले के नई उमंगों का दौर, करने लगी कलम आज शोर।

नासूर

कुछ कांटे कुछ बातें हर पल खटकते है , दिल को सोचने पर जो मजबूर करते है । अगर समय पर इन्हे नही निकाला जाए , तो जख्म इसके फिर 'न ासूर ' हो जाते है ।
तनहा खामोश है , अपनी महफ़िल में ये खूबसूरत शमा , ढल जायेगी अश्को में लपेटे जिस्म किसी वक्त गमगीन शमा ------------------------------------- जिंदगी को जिंदगी से है इतना प्रेम सोचकर सिर्फ़ वो कजा से घबराती है , यही वज़ह लिए , परेशानियों में मौत उसका साथ निभाती है ।

मिटना -बनना

बहुत कुछ बिसार दिया बहुत कुछ याद रक्खा , सहेजते - सहेजते क्या कुछ न गवा दिया , जो वक्त पकड़ सका वो संभल गया , जो मन न सह सका वो पिघल गया , रेत की तरह आहिस्ते - आहिस्ते आज फिसल गया , और याद बनकर अतीत ठहर गया ।

कथा -सार

कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।

संगदिल

तुम तो पत्थर की मूरत हो नज़र आते , अजंता की सूरत हो , जहां प ्रेम तो झलकता बखूबी पर अहसास नही जिन्दा कही भी , हर बात बेअसर है तुम पर जो समझ से मेरे है ऊपर , हर बात पे आसानी से कह जाते कोई फर्क नही पड़ता हम पर , इस हाड़ मांस के पुतले में दिल तो नही , रह गया कही पत्थर ? तुम कह गए और हम मान गये यहाँ बात नही होती , पूरी दिलबर , क्या ऐसा भी संभव है यह प्रश्न खड़ा , मेरे मन पर , छोड़ो अब इसे जाने दो , देखेंगे क्या होगा आगे आने पर ।