एक वृक्ष की तरह अटल , स्थिर , शांत धीर - गंभीर सी , ये माँ अपने बच्चो को सदा फल वो छाया देती ही रही , इशारों में ही हर जरूरत , समझ कर पूरी करती रही । बिना कहे दर्द सभी भांप कर , एक मरहम बनकर चोंट हमारी मिटाती रही । खुद मुरझा कर हमारे अरमान सींचती रही । इतनी सच्ची ' माँ ', अपने सिवा सबका ख्याल रखने वाली । ऐसी माँ की क्या इच्छा है ? कभी जानने की भी हमने कोशिश की । मन में है कई बाते उसकी , कभी पूछो तो आकाश बन जाएगा । ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, जिसने जिंदगी के साथ - साथ जीने का तजुर्बा भी दिया , उसके अहसास , जज्बात को , समझने की फुर्सत , हमें नही । ..................................................... माँ तुम्हे शत - शत नमन