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अगस्त, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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हम -तुम ------- एक ही रास्ते के दो मोड़ है , जो पलट कर उसी राह ले आते है जहां आरम्भ और अंत एक हो जाते है , फिर सोचने की कही कोई गुंजाइश नही रह जाती , फैसले की कोई सुनवाई हो ही नही पाती l
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ख्यालो की दौड़ कभी थमती नही कलम को थाम सकू वो फुर्सत नही , जब भी कोशिश की पकड़ने की वक़्त छीन ले गया , एक पल को रूकने नही दिया , सोचती हूँ इन्द्रधनुषी रंग सभी क्या बादल में ही छिप कर रह जायेंगे , या जमीं को भी कभी हसीं बनायेंगे l

वन्दे मातरम्

आज़ादी क्या है ? इसकी सच्ची परिभाषा क्या है , इसे साबित कैसे करे ? ऐसे ढेरो प्रश्न इस जश्न के सामने आते - आते जहन में उठने लगते है जिनके जवाब और मायने हम बहुत हद तक जानते है और समझते भी है , क्योंकि बचपन से ही हमें इस बिषय पर काफी समझाया और पढाया जाता है , कूट - कूट कर देश प्रेम की भावनाये मन में भरी जाती है , उसके प्रति क्या जिम्मेदारिया है हमारी , इस बात का अहसास कराया जाता है । पर जैसे जैसे बड़े होते जाते है इसे अपनी जिम्मेदारियों में , शान - शौकत के रंग ढंग में नज़र अंदाज कर देते है , और मौके मिलने पर स्कूली ज्ञान को ही बयां कर के अपने को सच्चे देश भक्त के रूप में सामने लाते है । लेकिन हर बात कह देने और बयां कर देने से ही सम्पूर्ण नही हो जाती । वो मुक्कमल हो इसके लिए कर्म का योगदान बेहद जरूरी है , तभी उसे उचित तरीके से परिभाषित किया जा सकता है और सम्मानित भी । इसके लिए अपने राष्ट्र की अमूल्य धरोहर को ...

रक्षाबंधन

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रंग बिरंगे धागों का ये सुन्दर त्यौहार , नयनो में सपने संजोये लौट आया फिर आज . भाई के स्नेह में लिपटी बहने हो रही निहाल , निकल पड़ी है सज के जाने को वो बाज़ार , भीनी सी मुस्कान लिए रही राखियों को निहार , सबसे सुन्दर कौन सी राखी उलझ गई लिए ख्याल , भईया खुश हो जाये मेरा कलाई पर किसे बाँध , भाव विभोर हो उठी है वो करके बचपन ध्यान , नयनो में सावन की बूंदे झूम पड़ी लिए धार , अपने मन के खुशियों को नही पा रही वो संभाल , चन्दन ,मीठा ,अक्षत ,दीप साथ में लिए राखी -रुमाल ढेरो उमंगें भर कर मन में सजा रही बहन राखी के थाल , निभा रहें राखी के बंधन मिल भाई बहन आज , सावन की हरियाली में लहलहा रहा पावन प्यार , रक्षाबंधन का आया है पावन सुन्दर त्यौहार l

अनुभव

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छोटी सी दो रचनाये --------------------------- महंगाई से अधिक भारी पड़ी हमको हमारी ईमानदारी , महंगाई को तो संभाल लिया इच्छाओ से समझौता कर , मगर ईमानदारी को संभाल नही पाये किसी समझौते पर ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, मेरी हर हार जीत साबित हुई , बीते समय की सीख साबित हुई l